नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता - रजिस्टर (NRC)
CAA और NRC दोनों अलग विधि हैं। CAA संसद द्वारा निर्मित विधि है। जबकि NRC के सन्दर्भ में विधि एवं उससे सम्बन्धित प्रक्रिया निर्माण अभी शेष है। असम और राष्ट्र व्यापी NRC में कोई भी सम्बन्ध नहीं है। असम में जो NRC लागू किया गया , वह '' असम समझौते '' और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश अनुसार तैयार की गयी और प्रवर्तनीय की गई।
किसी भी धर्म सम्भाव के व्यक्ति को CAA और NRC से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है।
NRC के सन्दर्भ में बनायीं जा रही विधि और प्रक्रिया का किसी भी धर्म से कोई सरोकार नहीं है। यह भारत के सभी नागरिकों के लिए सामान रूप से होगा; NRC नागरिकों का एक प्रकार का रजिस्टर होगा जिसमें देश के सभी नागरिकों को अपना नाम दर्ज़ / अंकित कराना होगा।
NRC का आधार धार्मिक - निरपेक्षता होगा। NRC जब भी प्रवर्तनीय कराया जायेगा तो वह धार्मिक आधार पर प्रवर्तनीय / लागू नहीं किया जायेगा। किसी भी नागरिक को सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता है कि वह किसी विशेष धर्म के प्रति सद्भावना रखता है।
सर्वलौकिक है कि अभी राष्ट्रीय स्तर पर NRC जैसा कोई प्रावधान लागू नहीं किया गया है और न ही इसकी औपचारिक घोषणा की गयी है, और न ही इसके सन्दर्भ में कोई विधि निर्मित की गयी है। अगर आने वाले समय में कोई प्रावधान लाया जाता है तो वह सभी भारतीय नागरिकों के लिया सामान होंगे।
असम NRC और १९७१ से पहले की वंशावली का प्रस्तुतीकरण :-
असम की समस्या को पूरे देश से जोड़ना ठीक नहीं है। वहां घुसपैठियों की समस्या लम्बे समय से चली आ रही थी। इसके विरोध में वहां ५-६ वर्षों तक आंदोलन और संघर्ष चला। इस घुसपैठ की समस्या की वजह से तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार को १९८५ में समझौता करना पड़ा था। इसके तहत घुसपैठियों की पहचान के लिए २५ मार्च १९७१ को कट ऑफ़ डेट मन गया ; जो NRC का आधार बना।
जिसमे १९७१ से पहले के वंशावली को प्रस्तुत करना था जो कि असम समझौता और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश के आधार पर था।
असम NRC और १९७१ से पहले की वंशावली का प्रस्तुतीकरण, राष्ट्र - व्यापी NRC से कोई सम्बन्ध नहीं है।
१९७१ से पहले की वंशावली का प्रस्तुतीकरण- ऐसा बिलकुल नहीं है १९७१ से पहले की वंशावली के लिए किसी को भी किसी प्रकार के दस्तावेज / प्रमाण-पत्र को प्रस्तुत करने कीआवश्यकता नहीं है। यह केवल असम NRC के लिए मान्य था वह भी ''असम समझौता '' और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर। देश के शेष हिस्सों के लिए The citizenship (Registration of citizens and Issues of National Identity cards) Rule, 2003 के अनुसार NRC की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग है।
नागरिकता के सन्दर्भ में प्रावधान:-
नागरिकता नियम २००९के अनुसार, किसी भी व्यक्ति की नागरिकता किस प्रकर निश्चित की जाएगी, यह प्रावधान नागरिकता अधिनियम, १९५५ के आधार पर बना है। यह नियम सार्वजनिक रूप से सभी के लिए सामान है।
नागरिकता के आधार / तरीके:-
१. जन्म के आधार पर
२. वंश के आधार पर
३. पंजीकरण के आधार पर
४. भूमि विस्तार के आधार पर
५. देशीयकरण के आधार पर
स्वीकार्य दस्तावेज / प्रमाण-पत्र:-
हालाँकि इस सन्दर्भ में अभी स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। परन्तु इस सन्दर्भ में रिफ्यूजी प्रमाण-पत्र, मतदाता पहचान-पत्र, पासपोर्ट, आधार कार्ड, लाइसेंस, जन्म प्रमाण-पत्र,घर / भूमि के कागजात, बीमा के कागजात, या फिर इसी प्रकार के अन्य सरकारी दस्तवेजों को शामिल किये जाने की संभावना है। स्वीकार्य दस्तावेजों की लम्बी होने की संभावना है जिससे कि किसी भी भारतीय नागरिक को परेशानी न हो।
दस्तावेज न होने की स्थिति में:-
पहचान साबित करने के लिए बहुत सामान्य दस्तावेज की जरूरत होगी। राष्ट्रीय स्तर पर NRC की घोषणा होती है तो सर्कार ऐसे नियम और निर्देश तय करेगी जिससे किसी को परेशानी न हो।
विधि निर्माताओं की यह मंशा बिलकुल नहीं है कि वह अपने नागरिकों को परेशान करें।
दस्तावेज न होने की स्थिति में अधिकारी उस व्यक्ति को गवाह लेन की अनुमति देगा; साथ ही अन्य सबूतों और सामुदायिक प्रमाणीकरण आदि की अनुमति देंगे। एक उचित प्रक्रिया का पालन किया जायेगा। किसी भी भारतीय नागरिक को अनुचित परेशानी में नहीं डाला जा सकता।
ऐसे लोग जो जो पढ़े - लिखे नहीं है, घर नहीं है, दस्तावेज नहीं है, गरीब है, और उनके पास पहचान का कोई आधार नहीं है; ऐसे लोग किसी न किसी आधार पर वोट डालते है और उन्हें सरकार की किसी न किसी कल्याणकारी योजना का मिला है उसी के आधार पर पहचान स्थापित की जाएगी।
- आशुतोष सिंह
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जवाब देंहटाएंFurther, if you please consider/mention the judgement of the Honourable Apex Court and some other statutes, then it will more better
Great effort
जवाब देंहटाएंAppreciated work
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