दत्तक ग्रहण की प्रथा हिंदू धर्म की प्राचीनता में सन्निहित है मनुष्य की पुत्र प्राप्ति की स्वाभाविक इच्छा वृद्धावस्था में सहायता आदि भावनाओं ने पुत्र प्राप्ति की आवश्यकता को तीव्र बना दिया था। पितरों को पिंडदान जल दान देने तथा धार्मिक संस्कार को पूरा करने के लिए एवं अपने नाम को कायम रखने के लिए एक व्यक्ति को पुत्र दत्तक ग्रहण में लेना चाहिए यदि वह पुत्र हीन हो ऐसी प्राचीन मान्यता रही है । अर्थात जब एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति को अपना अपत्य दे देता है तो इस देने के कृत्य को या किसी अन्य की संतान को अपना बनाने के कृत्य को दत्तक कहते हैं ।
वैध दत्तक की आवश्यक शर्तें ( धारा 6 )
इस अधिनियम की धारा 6 के अंतर्गत एक वैध दत्तक की आवश्यकता का उल्लेख किया गया है । इस संबंध में अधिनियम ने महत्वपूर्ण परिवर्तन किए हैं जो धारा 6 में इस प्रकार है कोई दत्तक तभी मान्य होगा जबकि दत्तक ग्रहिता व्यक्ति दत्तक ग्रहण करने की आवश्यकता , सामर्थ्य तथा साथ ही साथ अधिकार भी रखता हो , दत्तक देने वाला व्यक्ति ऐसा करने की सामर्थ्य रखता हो , दत्तक ग्रहण में लिया जाने वाला व्यक्ति दत्तक ग्रहण के योग्य हो , दत्तक ग्रहण इस अधिनियम की अन्य शर्तों के अनुकूल हुआ हो ।
कुमार शूरसेन बनाम बिहार राज्य एआईआर 2008 पटना 24 . इस बाद में वादी जो जन्म से मुस्लिम था वह बचपन से ही एक हिंदू द्वारा दत्तक ग्रहण कर लिया गया था अतः न्यायालय ने निर्धारित किया कि हिंदू दत्तक तथा भरण पोषण अधिनियम की धारा 6 के अनुसार एक हिंदू एक हिंदू का ही दत्तक ग्रहण कर सकता है न्यायालय ने दत्तक ग्रहण को अमान्य कर दिया ।
हिंदू पुरुष द्वारा दत्तक ग्रहण करने की सामर्थ्य ( धारा 7 )
धारा 7 के अनुसार कोई भी स्वस्थ चित व्यक्ति जो वयस्क है किसी भी पुत्र अथवा पुत्री को दत्तक ग्रहण में ले सकता है । परंतु उसकी पत्नी जीवित है तो जब तक की पत्नी ने पूर्ण तथा अंतिम रूप से संसार को त्याग ना दिया हो अथवा हिंदू न रह गई हो अथवा सक्षम सक्षम क्षेत्राधिकार वाले किसी न्यायालय द्वारा विकृत चित वाली घोषित ना कर दी गई हो तब तक वह अपनी पत्नी की सहमति के बिना दत्तक ग्रहण नहीं करेगा । यदि पति की एक से ज्यादा पत्नियां है तो सबकी सहमति लेना आवश्यक होगा ।
सबरजीत कौर बनाम गुरु मल कौर ए आई आर 2009 एनओसी 889 पंजाब एंड हरियाणा न्यायालय ने निर्धारित किया कि यदि दंपत्ति की कोई संतान ना हो तथा पति ने बिना पत्नी की सहमति से दत्तक लिया है तो वह दत्तक अमान्य हो जाएगा ।
भोलू राम बनाम रामलाल एआईआर 1999 मध्य प्रदेश 198 मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने यह निर्धारित किया कि यदि पत्नी अलग रह रही है अथवा घोर अनैतिक जीवन व्यतीत करती हुई कई अन्य चली गई है और वही रहने लगी है तो उससे पुत्र को दतक में दिए जाने के संबंध में उसकी सहमति की आवश्यकता समाप्त नहीं हो जाती । ऐसी स्थिति में यदि उसकी सहमति नहीं ली गई है तो दत्तक ग्रहण अवैध हो जाएगा ।
स्त्रियों के दत्तक ग्रहण करने की सामर्थ्य धारा 8 इस अधिनियम के द्वारा स्त्रियों को भी दत्तक ग्रहण करने का अधिकार प्रदान कर दिया गया है जिसमें उन्हें अब मृत पति से प्राधिकार प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है । इस प्रकार का प्राधिकार पति से प्राप्त करना पूर्व विधि में आवश्यक था अधिनियम में एक अविवाहित स्त्री भी दत्तक ग्रहण कर सकती है।
अधिनियम की धारा 8 में स्त्री द्वारा दत्तक ग्रहण करने के लिए निम्नलिखित बातों को आवश्यक बताया गया है
1. वह स्वस्थ चित्त की हो ,
2. वह वयस्क हो
3 . वह विवाहिता ना हो अथवा यदि वह विवाहित है तो उसने विवाह भंग कर दिया हो अथवा
4. उसका पति मर चुका हो अथवा
5. वह पूर्ण तथा अंतिम रूप से संसार त्याग चुका हो अथवा
6. उसका पति हिंदू नहीं रह गया हो अथवा
7. उसका पति किसी सक्षम क्षेत्राधिकार वाले न्यायालय द्वारा विकृत मस्तिष्क का घोषित किया जा चुका हो।
अतः स्त्रियों का दत्तक ग्रहण संबंधी अधिकार सीमित है । यह अधिकार अविवाहित अवस्था में अथवा विधवा होने की दशा में अथवा कुछ शर्तों के साथ विवाहिता होने की स्थिति में प्रयोग किया जा सकता है ।
स्त्री का दत्तक ग्रहण उसके पति के लिए होता है या व्यक्तिगत होता है ?
जब दत्तक ग्रहण स्त्री द्वारा विवाहिता जीवन की स्थिति में किया जाता है तो वह सदैव पति के लिए होता है क्योंकि उस दशा में स्त्री द्वारा दत्तक ग्रहण तब किया जाता है जब पति धारा 8 के खंड स में दी गई किसी योग्यता से निरयोग्य हो चुका है । शून्य विवाह के अंतर्गत चूंकि विवाह प्रारंभ से शून्य होता है पत्नी को यह अधिकार है कि वह पति के प्राधिकार के बिना दत्तक ग्रहण कर सकती है । ऐसे विवाह में उसकी स्थिति एक अविवाहिता स्त्री जैसी होती है । यद्यपि विवाह शून्य होता फिर भी यदि उसके कोई पुत्र उस विवाह से उत्पन्न हो गया हो तो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 के अनुसार वह संतान वैध होगी और ऐसे संतान की उपस्थिति में वह संतानहीन नहीं समझी जाएगी अतः दत्तक ग्रहण भी नहीं कर सकती है।
मालती राव चौधरी बनाम सुधींद्रनाथ मजूमदार ए आई आर 2007 कोलकाता न्यायालय ने निर्धारित किया कि अविवाहित पुरुष दत्तक ग्रहण करने के लिए स्वतंत्र होता है लेकिन विवाहित पुरुष द्वारा दत्तक ग्रहण में पत्नी की सहमति अनिवार्य होती है ।
श्रीमती विजयलक्ष्मा बनाम बीटी शंकर एआईआर 2001 सुप्रीम कोर्ट 1424 न्यायालय ने निर्धारित किया कि यदि संतानहींन पति की दो पत्नियां हैं वहां दोनों एक दूसरे से स्वतंत्र होकर भी दत्तक ग्रहण कर सकती हैं अतः वह एक दूसरे से सहमति लेना आवश्यक नहीं होता है ।
वे व्यक्ति जो दत्तक दे सकते हैं ( धारा 9 ) इस अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत उन व्यक्तियों का उल्लेख किया गया है जो दत्तक ग्रहण में बच्चे को देने के लिए सक्षम होते हैं वे इस प्रकार हैं
1. बच्चे के माता - पिता या संरक्षक के अतिरिक्त कोई व्यक्ति बालक को दत्तक ग्रहण में देने के लिए समर्थ नहीं है ।
2. इस अधिनियम में 2010 में संशोधन के पश्चात व्यवस्था की गई है कि पिता या माता को यदि वह जीवित है पुत्र या पुत्री का दतक में देने का समान अधिकार होगा परंतु ऐसे अधिकार का प्रयोग उनमें से किसी के द्वारा अन्य की सहमति के सिवाय नहीं कर सकते । जब तक उनमें से एक ने पूर्ण और अंतिम रूप से संसार का त्याग नहीं कर दिया हो अथवा हिंदू न रह गया हो अथवा सक्षम अधिकारता वाले किसी न्यायालय ने उसके बारे में यह घोषित कर दिया हो कि वह विकृतचित् का है ।
3. धारा 9 ( 4 ) के अनुसार जबकि माता पिता दोनों की मृत्यु हो चुकी है अथवा वह संसार त्याग चुके हो अथवा संतान का परित्याग कर चुके हो अथवा किसी सक्षम न्यायालय द्वारा उनके विषय में यह घोषित कर दिया गया है कि वे वितरित मस्तिष्क के हैं अथवा जहां संतान के माता - पिता का पता ना चलता हो तो बालक का संरक्षक चाहे वह इच्छा पत्र द्वारा नियुक्त संरक्षक हो अथवा न्यायालय द्वारा नियुक्त अथवा घोषित संरक्षक को न्यायालय की पूर्व अनुज्ञा लेकर बालक को दत्तक ग्रहण में दे सकेगा ।
4. धारा 9 ( 4 ) के अनुसार स्थिति को न्यायालय में विचार में लेगा की अपत्य की आयु और समझने की शक्ति कितनी है उसके बाद ही दत्तक देने की अनुमति देगा ।
धुवराज जैन बनाम सूरज बाई ए आई आर 1973 राजस्थान 7 न्यायालय ने निर्धारित किया कि एक सौतेली माता अपने सौतेले पुत्र या पुत्री को दत्तक ग्रहण में नहीं दे सकती क्योंकि उसे इस बात का सामर्थ्य नहीं प्राप्त है । केवल नैसर्गिक माता - पिता ही दत्तक ग्रहण में बच्चे को देने का अधिकार एवं सामर्थ्य रखते हैं । व्यक्ति जो दत्तक लिए जा सकते हैं ,
धारा ( 10 ) कोई व्यक्ति व्यक्ति दत्तक ग्रहण में लिए जाने योग्य नहीं होगा जब तक कि वह निम्नलिखित शर्तें पूरी नहीं कर देता है। वह हिंदू हो , - इसके पूर्व कभी भी वह दत्तक ग्रहण ना रहा हो , वह विवाहित अथवा विवाहिता ना हो जब तक इसके विपरीत कोई प्रथा अथवा रुठि पक्षकारों के बीच प्रचलित ना हो जिसके अनुसार विवाहिता को दत्तक ग्रहण में लिया जाता है 15 वर्ष की आयु पूरी करनी होगी लेकिन रुदि व प्रथा लागू नहीं होती है ।
बालकृष्ण भट्ट बनाम सदाशिव घरट ए आई आर 1971 न्यायालय ने निर्धारित किया कि प्रथाओं के प्रमाणित किए जाने पर ही धारा 10 ( 4 ) के प्रावधान लागू किया जाएगा और 15 वर्ष से अधिक आयु के बालक का दत्तक ग्रहण वैध माना जाएगा ।
वीरान माहेश्वरी बनाम गिरीश चंद्र 1986 इलाहाबाद 54 न्यायालय निर्धारित किया कि 15 वर्ष से अधिक का दत्तक होता है तो उसे प्रथाओं का प्रमाण देना पड़ेगा चाहे भले ही दूसरे पक्षकार ने उसकी वैधता को चुनौती ना दिया हो । भरण पोषण ( Maintenance ) हिंदू विधि के अनुसार परिवार का सदस्य पूर्वज की संपत्ति में या तो भागीदार होता है या संपत्ति की आय पोषण अधिकार है ।
हिंदू दत्तक तथा पोषण अधिनियम 1956 के अंतर्गत निम्नलिखित व्यक्ति भरण पोषण के अधिकारी बनाए गए हैं
1. पत्नी
2. विधवा पुत्रवधू
3. बच्चे तथा वृद्ध माता - पिता पत्नी का भरण पोषण धारा 18 )
पत्नी को दो अधिकार दिए गए हैं भरण पोषण का अधिकार तथा पृथक निवास करने का अधिकार अधिनियम की धारा 18 ( 1 ) अनुसार पत्नी अधिनियम के पहले या बाद में विवाहित हो अपने जीवन काल में अपने पति से भरण पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी । धारा 18 ( 2 ) के अनुसार पत्नी पृथक निवास करके भी भरण पोषण का दावा कर सकती है जब वह पृथक निवास करती है उसके निम्नलिखित आधार होने चाहिए
1. यदि पति - पत्नी के अभित्याग का अपराधी है अर्थात व युक्तियुक्त कारण के बिना या बिना पत्नी की राय के या उसकी इच्छा के विरुद्ध उसे त्यागता है या इच्छापूर्वक उसकी अवहेलना करता है ।
2 . यदि पति ने इस प्रकार की निर्दयता का व्यवहार किया है जिससे उसकी पत्नी के मस्तिष्क में या युक्तियुक्त संदेह उत्पन्न हो जाए कि उसका पति के साथ रहना हानिकर या घातक है। 3 . यदि वह कोई दूसरी जीवित पत्नी रखता हो 4. यदि वह कोई उपपत्नी रखता है क्या उसके साथ अन्य स्थान पर रहता है ।
5 . यदि वह हिंदू न रह गया हो ।
6 कोई अन्य कारण हो जो उसके पृथक निवास को उचित ठहराता हो।
इस अधिनियम की धारा 18 ( 3 ) के अनुसार यदि कोई पत्नी शील भ्रष्ट है या वह कोई धर्म बदलकर गैर हिंदू हो जाती है या बिना कारण से पति से अलग रहती है तो उस स्थिति में वह भरण - पोषण का दावा नहीं कर सकेगी ।
रॉबिन कुमार चंद्रा बनाम शिखा चंद्रा 2000 न्यायालय ने निर्धारित किया कि पत्नी को भरण - पोषण का अधिकार उसी समय उत्पन्न हो जाता है जब वह न्यायालय में कोई वाद प्रस्तुत करती है।
नरेंद्र पाल कौर चावला बनाम मनजीत सिंह चावला एआईआर 2008 दिल्ली न्यायालय ने निर्धारित किया कि कोई व्यक्ति पहली पत्नी के रहते हुए किसी दूसरी स्त्री से विवाह यह छुपाकर करता है कि वह अविवाहित हैं वहां दूसरी पत्नी भरण पोषण की हकदार होगी ।
नरेंद्र अप्पा भटकर बनाम नीलम्मा ए आई आर 2013 न्यायालय ने निर्धारित किया कि सीआरपीसी की धारा 125 मे आपसी सुलह समझौता के आधार पर वाद का निस्तारण हो गया हो और पति पत्नी अलग रह रहे हो वहां पत्नी का अधिकार इस अधिनियम के अंतर्गत समाप्त नहीं हो जाता है ।
विधवा पुत्रवधू का भरण पोषण ( धारा 19 ) इस अधिनियम की धारा 19 के अनुसार हिंदू पत्नी इस अधिनियम के पूर्व या पश्चात विवाहित हो अपने पति की मृत्यु के बाद अपने श्वसुर भरण - पोषण प्राप्त करने की हकदार होगी । श्वसुर का भरण पोषण करने का दायित्व व्यक्तिगत दायित्व नहीं है बल्कि वह कुटुंब की संपत्ति से भरण - पोषण करने के लिए उत्तरदाई है लेकिन जब वह विधवा पत्नी स्वयं की संपत्ति से अपना भरण पोषण प्राप्त कर सकती हैं या पति की संपत्ति से या पिता की संपत्ति से या माता की संपत्ति से या पुत्र या पुत्री की संपत्ति से अपना भरण - पोषण कर रही है तो उस स्थिति में वह श्वसुर से भरण - पोषण नहीं प्राप्त कर सकती है ।
निम्नलिखित आधार विधवा पुत्रवधू का भरण पोषण का अधिकार संपहत हो
1. यदि वह पुनः विवाह कर लेती है ,
2. यदि वह गैर हिंदू हो जाती है ,
3. श्वसुर के पास भरण - पोषण के लिए कोई साधन नहीं है ,
4. विधवा पुत्रवधू ने सहदायिकी की संपत्ति में हिस्सा प्राप्त कर लिया हो ।
कनईलाल प्रमाणिक बनाम श्रीमती पुष्पा रानी ए आई आर 1976 कोलकाता 172 निर्धारित हुआ की धारा 19 ( 2 ) केवल मिताक्षरा विधि पर लागू होती है दायभाग पर नहीं क्योंकि वहां संपत्ति पिता के रहते पुत्र नहीं प्राप्त कर सकता है ।
बलबीर कौर बनाम हरिंदर कौर ए आई आर 2003 पंजाब 174
न्यायालय ने निर्धारित किया की पुत्रवधू श्वसुर के स्वयं अर्जित संपति से भरण - पोषण पाने की हकदार हैं ।
संतान तथा वृद्ध माता - पिता का भरण पोषण ( धारा 20 ) इस अधिनियम की धारा 20 के अंतर्गत कोई हिंदू अपने जीवन काल में अपने धर्मज अधर्मज संतानों और वृद्ध माता पिता का भरण पोषण करने के लिए बाध्य है । भरण पोषण का हकदार बच्चा अवयस्क होना चाहिए इसके अंतर्गत पौत्र पौत्री सम्मिलित नहीं है यदि कोई पुत्री जो अविवाहित हो अपना भरण - पोषण करने में असमर्थ हो वहां वह व्यक्ति भरण पोषण के लिए उत्तरदाई होगा । नोट माता के अंतर्गत निसंतान सौतेली माता भी आती है । लक्ष्मी बनाम कृष्ण 1968 इस वाद में पिता अपनी दूसरी पत्नी के साथ रह रहा था और पुत्री अपनी माता के साथ वहां न्यायालय ने निर्धारित किया कि पुत्री भरण पोषण की हकदार है । भरण पोषण की धनराशि ( धारा 23 ) हिंदू दत्तक ग्रहण तथा भरण पोषण अधिनियम 1956 की धारा 23 ने पोषण की धनराशि निर्धारित करने के लिए न्यायालय को सर्वोपरि अधिकार दे रखा हैं । पोषण की धनराशि न्यायालय के अपने विवेक के आधार पर निश्चित करेगा तथा न्यायालय धनराशि निश्चित करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेगा,
1.पत्नी बच्चे या वृद्ध माता - पिता के भरण - पोषण की राशि निर्धारित करते समय
A. पक्षकारों की अवस्था तथा हैसियत
B. दावेदार की युक्तियुक्त मांग
C. यदि दावेदार अलग रह रहा हो तो क्या उसका वैसा करना न्यायोचित है ।
D. दावेदार की संपत्ति का मूल्य जिसके अंतर्गत उस संपत्ति से आय दावेदार की स्वयं की आय तथा किसी अन्य रूप से प्राप्त आय सम्मिलित हैं। E. दावेदारों की संख्या ।
2. किसी आश्रित के भरण - पोषण की धनराशि निर्धारित करने के समय न्यायालय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखेगा,
A. मृतक का ऋण देने के बाद उसकी संपत्ति का मूल्य ,
B. आश्रित के विषय में मृतक द्वारा इच्छा पत्र में कहीं गई बात ,
C. दोनों के संबंध की दूरी ,
D. आश्रित की युक्ति युक्त आवश्यकता ,
E. मृतक का आश्रित से पूर्व संबंध ,
F. आश्रित की संपत्ति का मूल्य तथा उसकी आय उसका स्वयं का उपार्जन किसी अन्य प्रकार : से आय ,
G. इस अधिनियम के अंतर्गत आश्रित पोषण के हकदार की संख्या
मगन भाई छोटू भाई बना मनीबेन ए आई आर 1985 गुजरात 18 न्यायालय ने निर्धारित किया कि मामले के तथ्यों के अनुसार पत्नी को पति की आय में एक तिहाई अथवा कुछ परिस्थितियों में आधा भाग दिया जाना चाहिए । यदि पति की आय अधिक है और उसको अपने को छोड़कर अन्य किसी का भरण - पोषण नहीं करना है उसकी संतान पत्नी के साथ रह रही हो तो उस स्थिति में पत्नी को पति की पूरी आय का आधा हिस्सा दे दिया जाना चाहिए ।
परिस्थितियों के अनुसार राशि में परिवर्तन ( धारा 25 ) यदि भरण पोषण की धनराशि में परिवर्तन करना न्याय संगत हो तो वहां परिवर्तन किया जा सकता है ।
मदनलाल बनाम श्रीमती सुमन ए आई आर 2002 पंजाब एंड हरियाणा 321 न्यायालय ने निर्धारित किया कि यदि पत्नी भरण पोषण की राशि ले रही हो वहां उसे कोई संतान उत्पन्न हो जाती तो राशि में पुनः बदलाव किया जाएगा और उसे प्रदान किया जाएगा ।
शिप्रा भट्टाचार्य बनाम डॉक्टर अमरेश भट्टाचार्य 2009
न्यायालय ने निर्धारित किया कि यदि पति की आय में वृद्धि होती है तो पत्नी भी बढ़ी हुई राशि लेने की हकदार होगी ।
बंशीधर मोहंती बनाम श्रीमती ज्योत्सना रानी मोहंती 2002 उड़ीसा भरण पोषण की धनराशि घटाने या बढ़ाने के लिए एक पृथक बाद लाना पड़ता है लेकिन जहां पत्नी ने अपने भरण पोषण पाने के लिए हिंदू भरण पोषण अधिनियम की धारा के अंतर्गत भरण पोषण प्राप्त किया है वहां ऐसी स्त्री अपने भरण - पोषण को बढ़ाने के लिए दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के अंतर्गत कोई वाद नहीं ला सकती है ।
भरण पोषण अधिकार पर संपत्ति के हस्तांतरण का प्रभाव- जहां आश्रित भरण - पोषण का दावा करता है और संपत्ति को अंतरित कर दी जाती है तो उस स्थिति में संपत्ति जिसको अंतरित की गई है उस संपत्ति से भरण - पोषण दिया जाएगा लेकिन यदि उसने संपत्ति खरीदी हो और वह उस समय नहीं जानता था कि उससे भरण - पोषण दिया जाना है तो उस स्थिति में वह भरण पोषण देने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा।
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