प्रत्येक संविधान का अपना दर्शन होता है। हमारे संविधान के पीछे जो दर्शन है उसके लिए हमे पंडित जवाहर लाल नेहरू के उस ऐतिहासिक उद्देश्य - संकल्प की ओर दृष्टिपात करना होगा जो संविधान सभा ने 22 जनवरी, 1947 को अंगीकार किया था, और जिससे आगे सभी चरणों में संविधान को रूप देने में प्रेरणा मिली है।
42 वें संविधान संशोधन अधिनियम , 1976 द्वारा इसमें समाजवादी , पंथनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्दों को सम्मिलित किया गया ।
यथा संशोधित उद्देश्य - संकल्प (प्रस्तावना) इस प्रकार हैं :-
प्रस्तावना
" हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्व संपन्न, समाजवादी पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को :सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता,
प्रतिष्ठा और अवसर की समता
प्राप्त कराने के लिये तथा उन सब में
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली
बंधुता बढ़ाने के लिये
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई . (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।"
पण्डित नेहरू के शब्दों में उपर्युक्त संकल्प "संकल्प से कुछ अधिक है यह एक घोषणा है, एक दृढ़ निश्चय है, एक प्रतिज्ञा है, एक वचन है और हम सभी के लिए एक समर्पण है। उक्त संकल्प मे जिन आदर्शों को रखा गया है वे संविधान की उद्देश्यिका मे दिखाई पड़ते है। 1976 मे यथा संशोधित इस उद्देश्यिका मे संविधान के ध्येय और उसके उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन है।"
उद्देश्यिका (प्रस्तावना) से दो प्रयोजन सिद्ध होते हैं।
1. प्रस्तावना यह बताती है कि संविधान के प्राधिकार का स्त्रोत क्या है?
2. प्रस्तावना यह भी बताती है कि संविधान किन उद्देश्यों को संवर्धित या प्राप्त करना चाहता है।
प्रस्तावना में उल्लेखित मुख्य शब्दों के अर्थ :
हम भारत के लोग
इसका तात्पर्य यह है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च संप्रभु है , अतः भारतीय जनता को जो अधिकार मिले हैं वही संविधान का आधार है अर्थात् दूसरे शब्दों में भारतीय संविधान भारतीय जनता को समर्पित है।
संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न
इस शब्द का आशय है कि , भारत ना तो किसी अन्य देश पर निर्भर है और ना ही किसी अन्य देश का डोमिनियन है । इसके ऊपर और कोई शक्ति नहीं है और यह अपने आंतरिक और बाहरी मामलों का निस्तारण करने के लिए स्वतंत्र हैं ।
भारतीय संविधान भारतीयों (संविधान निर्मात्री सभा) द्वारा बनाया गया है, न कि ब्रिटिश संसद की देन है। इस बात मे यह पूर्ववर्ती भारतीय शासन अधिनियम से भिन्न है। इसे भारत के लोंगो ने एक प्रभुत्वसंपन्न संविधान सभा मे समावेत अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अधिकथित किया था। यह सभा अपने देश के राजनैतिक भविष्य को अवधारित करने के लिए सक्षम थी।
गोपालन बनाम मद्रास राज्य, (1950) एस. सी. आर. 88 (198)
बेरुबाड़ी मामला, ए. आई. आर. 1960 एस. सी. 845 (846)
समाजवादी
समाजवादी शब्द का आशय यह है कि ऐसी संरचना जिसमें उत्पादन के मुख्य साधनों , पूँजी , जमीन , संपत्ति आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्य है ।
42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा उद्देश्यिका (प्रस्तावना) me समाजवादी शब्द सम्मिलित करके यह सुनिश्चित किया गया था कि भारतीय राज्य-व्यवस्था का ध्येय समाजवाद है। समाजवाद के ऊंचे आदर्शों को अभिव्यक्त रूप से दर्शित करने के लिए इसे सम्मिलित किया गया।
भारतीय संविधान द्वारा परिकल्पित समाजवाद, राज्य के समाजवाद का वह सामन्य ढांचा नहीं है। जिसमें धन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण किया जाता है और प्राइवेट सम्पत्तियों का उत्सादन हो जाता है। श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा था -
"हमने सदैव कहा है कि हमारा समाजवाद अपने ढंग का है। हम उन्हीं क्षेत्रों मे राष्ट्रीयकरण करेंगे जिनमे हम आवश्यकता समझते है केवल राष्ट्रीयकरण, यह हमारा समाजवाद नहीं है।"
एक्सेलवियर बनाम भारत संघ, ए. आई. आर. 1979 एस. सी. पैरा 24
नकारा बनाम भारत संघ, ए. आई. आर. 1983 एस. सी. पैरा 33-34
पंथनिरपेक्ष
पंथनिरपेक्ष राज्य जो सभी धर्मों की स्वतंत्रता प्रत्याभूत करता है।
' पंथनिरपेक्ष राज्य ' शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में उल्लेख नहीं किया गया था तथापि इसमें कोई संदेह नहीं है कि , संविधान के निर्माता ऐसे ही राज्य की स्थापना करने चाहते थे । इसलिए संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 ( धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ) जोड़े गए । भारतीय संविधान में पंथनिरपेक्षता की सभी अवधारणाएँ विद्यमान है अर्थात् हमारे देश में सभी धर्म समान हैं और उन्हें सरकार का समान समर्थन प्राप्त है ।
लोकतांत्रिक
शब्द का इस्तेमाल वृहद रूप से किया है , जिसमें न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र को भी शामिल किया गया है। व्यस्क मताधिकार , समाजिक चुनाव , कानून की सर्वोच्चता , न्यायपालिका की स्वतंत्रता , भेदभाव का अभाव भारतीय राजव्यवस्था के लोकतांत्रिक लक्षण के स्वरूप हैं ।
गणतंत्र
प्रस्तावना में गणराज्य ' शब्द का उपयोग इस विषय पर प्रकाश डालता है कि दो प्रकार की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ' वंशागत लोकतंत्र ' तथा ' लोकतंत्रीय गणतंत्र ' में से भारतीय संविधान अंतर्गत लोकतंत्रीय गणतंत्र को अपनाया गया है। गणतंत्र में राज्य प्रमुख हमेशा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित समय के लिये चुनकर आता है ।
गणतंत्र के अर्थ में दो और बातें शामिल हैं।
पहली यह कि राजनीतिक संप्रभुता किसी एक व्यक्ति जैसे राजा के हाथ में होने के बजाय लोगों के हाथ में होती हैं ।
दूसरी यह कि किसी भी विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की अनुपस्थिति । इसलिये हर सार्वजनिक कार्यालय बगैर किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के लिये खुला होगा ।
स्वतंत्रता
यहाँ स्वतंत्रता का तात्पर्य नागरिक स्वतंत्रता से है। स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल संविधान में लिखी सीमाओं के भीतर ही किया जा सकता है । यह व्यक्ति के विकास के लिये अवसर प्रदान करता है।
न्याय
न्याय का भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख है , जिसे तीन भिन्न रूपों में देखा जा सकता है सामाजिक न्याय , राजनीतिक न्याय व आर्थिक न्याय ।
सामाजिक न्याय से अभिप्राय है कि मानव - मानव के बीच जाति , वर्ण के आधार पर भेदभाव न माना जाए और प्रत्येक नागरिक को उन्नति के समुचित अवसर सुलभ हो ।
आर्थिक न्याय का अर्थ है कि उत्पादन एवं वितरण के साधनों का न्यायोचित वितरण हो और धन संपदा का केवल कुछ ही हाथों में केंद्रीकृत ना हो जाए ।
राजनीतिक न्याय का अभिप्राय है कि राज्य के अंतर्गत समस्त नागरिकों को समान रूप से नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो , चाहे वह राजनीतिक दफ्तरों में प्रवेश की बात हो अथवा अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का अधिकार ।
समता
भारतीय संविधान की प्रस्तावना हर नागरिक को स्थिति और अवसर की समता प्रदान करती है जिसका अभिप्राय है समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकार की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने की उपबंध ।
बंधुत्व
इसका शाब्दिक अर्थ है भाईचारे की भावना प्रस्तावना के अनुसार बंधुत्व में दो बातों को सुनिश्चित करना होगा । पहला व्यक्ति का सम्मान और दूसरा देश की एकता और अखंडता । मौलिक कर्तव्य में भी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करने की बात कही गई है ।