बुधवार, 22 जनवरी 2020

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (Natioanl Population Register - NPR)

हम भारत्त के लोग से अभिप्राय, भारत की जनता  अर्थात भारत के नागरिकों से हैं। भारत अपने नागरिकों को घुसपैठियों से अलग परिभाषित , चिन्हित , और प्रतिष्ठित करता है;
 वे विधियाँ ;  नागरिकता अधिनियम,१९५५ (कई बार संशोधित),
                    विदेशी अधिनयम, १९४६
                    पासपोर्ट अधिनयम, १९२० हैं।

भारत में रहने वाला प्रत्येक गैर - नागरिक एक घुसपैठिया या अवैध प्रवासी है, अगर वह एक पर्यटक या राजनायिक नहीं है।
विदेशी अधिनियम के अनुसार भारत के सभी घुसपैठियों या अवैध प्रवासियों को निष्कासित करना सरकार का कर्त्तव्य है।  अवैध प्रवासियों या घुसपैठियों का अनुमान लगन उतना ही उपमेयमन है जितना अर्थ-व्यवस्था में काले  धन के प्रचलन का अनुमान लगाना है, जबकि दोनों ही भारतीय व्यवस्था में मौजूद हैं।

इस कहानी की शुरुआत वर्तमान परिवेश में तब हुई जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने  नागरिकता ( संशोधन ) अधिनयम ,२०१९ के चर्चा के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर नागरिकों का रजिस्टर ( NRC ) के प्रावधान लेन की घोषणा की।
नागरिकता ( संशोधन ) अधिनियम,२०१९ के विरोध में कई जगह पर कई स्थानों पर विरोध (हिंसक) प्रदर्शन जारी है। इसी के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation) पर विवाद छिड़ गया।  पश्चिम बंगाल और  केरल सरकारों ने  राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation)  कार्य को स्थागित करने की घोषणा की हैं। अब घटनाओं  की यह प्रक्रिया गैर - बीजेपी शासित राज्यों ने भी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation) की प्रक्रिया का विरोध शुरू कर दिया है।  राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation) की प्रक्रिया कई उलझनों में रह गयी है , समय के साथ जनगणना के लिए गिनती तेजी से शुरू हो गयी है। जनगणना के साथ ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation) का डाटा भी डोर टू डोर चरण प्रक्रिया के द्वारा की जानी है।


क्या हाल  ही पारित नागरिकता ( संशोधन ) अधिनियम, २०१९ (CAA) राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) से सम्बंधित है ?

इसका  जवाब हाँ या नहीं दोनों हो सकते है। इसका सीधा सम्बन्ध नहीं है यह इस पर निर्भर करता है कि  सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के लिए एकत्रित डाटा का उपयोग किस प्रकार करती है जिसकी वर्तमान समय में कोई घोषणा नहीं की गयी है।   




                      राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (Natioanl Population Register - NPR)

 राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) देश के सामान्य निवासियों  का रजिस्टर है। यह नागरिकता अधिनियम, १९५५ और नागरिकता ( नागरिकों का  पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र ) नियम, २००३ के प्रावधानों के तहत स्थानीय (local) ( ग्राम/उप-टाउन ), उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है।
भारत के प्रत्येक सामान्य निवासी को NPR में पणिकरान करना अनिवार्य है। एक सामान्य निवासी को NPR के उद्देश्यों के लिए परिभाषित किया जाता है, जो पिछले ६ महीने या उससे अधिक समय में स्थानीय क्षेत्र में रहता है या एक व्यक्ति जो अगले महीने या उससे अधिक  समय तक उस क्षेत्र में निवास करने का इरादा रखता है।

उद्देश्य :- NPR का उद्देश्य भारत के हर निवासी का राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक राष्ट्रीय पहचान डेटाबेस तैयार करना है।  डेटाबेस में जनसांख्यिकी के साथ-साथ बायोमैट्रिक विवरण शामिल  होंगे।

प्रत्येक सामान्य निवासी के लिए निम्नलिखित जनसांख्यिकी विवरण आवश्यक हैं।
१. व्यक्ति का नाम
२. घर के मुखिया से रिश्ता
३. पिता का नाम
४. माता का नाम
५. पति का नाम (यदि विवाहित है )
६. लिंग
७. जन्म-तिथि
८. वैवाहिक स्थिति  
९. जन्म-स्थान
१०. राष्ट्रीयता (घोषित के रूप में )
११. सामान्य निवास का वर्तमान पता
१२. वर्तमान पते पर रहने अवधि
१३. स्थायी निवास पता
१४. व्यवसाय/गतिविधि
१५. शैक्षणिक योग्यता



राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के लिए सर्वप्रथम डाटा २०१० में भारत की जनगणना के गृह -गृह चरण व्यवस्था के साथ एकत्र किया गया।  इस डाटा का अद्यतन ( updation ) २०१५ के दौरान डोर-टू-डोर सर्वे करके किया गया था। अद्यतन (upadate ) जानकारी का डिजटलीकरण पूरा हो गया है।
अब असम को छोड़कर सभी राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में अप्रैल-सितम्बर २०२० के दौरान जनगणना - २०२१ के गृह-गृह चरण के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) को अद्यतन ( update ) करने का निर्णय लिया गया है। इस आशय की राजपत्र अधिसूचना केंद्र - सरकार द्वारा पहले ही प्रकाशित की जा चुकी है।


राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) और नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर ( NRC ) की वैधानिकता -


१९५५ के नागरिकता अधिनियम में  संशोधन कर उसमे एक  नई धारा 14a जोड़ी गयी।  जो राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने से सम्बंधित है।

नागरिकता अधिनियम की धारा 14a:-

       राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना-
(१) केंद्र सरकार अनिवार्य रूप से भारत के प्रत्येक नागरिक को पंजीकृत कर सकती है और उसे राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी कर सकती है।
(2) केंद्र सरकार भारतीय नागरिकों के एक राष्ट्रीय रजिस्टर को बनाए रख सकती है और इस उद्देश्य के लिए एक राष्ट्रीय पंजीकरण प्राधिकरण की स्थापना करती है।
(३) नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, २००३ के प्रारंभ होने की तारीख से, रजिस्ट्रार जनरल, भारत, बर्थ एंड डेथ्स एक्ट, १ ९ ६ ९ के पंजीकरण की धारा ३ की उप-धारा (१) के तहत नियुक्त (१ from) 1969) राष्ट्रीय      पंजीकरण प्राधिकरण के रूप में कार्य करेगा और वह नागरिक पंजीकरण के रजिस्ट्रार जनरल के रूप में कार्य करेगा।
(4) केंद्र सरकार ऐसे अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को नियुक्त कर सकती है, जो अपने कार्यों और जिम्मेदारियों के निर्वहन में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ सिटीजन रजिस्ट्रेशन की सहायता के लिए आवश्यक हो सकते हैं।
(५) भारत के नागरिकों के अनिवार्य पंजीकरण में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित की जाएगी।

यह प्रक्रिया नागरिकता ( नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र ) नियम, २००३ के नियम ३(४) और नियम ४(१) के अनुसार होंगे।



जनगणना ( Census ) और  राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ):-

भारत में जनगणना निर्णायक है। इसमें भारत की जनसंख्या के बारे में सामान्य डाटा एकत्रित करने के उद्देश्य के रूप में एक विस्तृत प्रश्नावली शामिल है। २०२१ की जनगणना में प्रगणक को लाइन क्रमांक, भवन संख्या, जनगणना मकान नम्बर, जनगणना मकान में फर्श, दीवार और छत में प्रयुक्त सामग्री, जनगणना मकान के उपयोग का पता ( वास्तविक आदि ), आयु, लिंग, वैवाहिक स्थिति, व्यवसाय, धर्म, जन्म-स्थान, विकलांगता, मातृभाषा और यदि वे अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग जैसे  ३४ विवरण / प्रश्न शामिल होंगे।

NPR प्रक्रिया व्यक्तियों / नागरिकों के जनसांख्यिकीय और बायोमैट्रिक विवरण को एकत्रित करती है। NPR और जनगणना ( census ) दोनों प्रक्रियाओं में डोर टू डोर गणना शामिल है। लेकिन NPR इस  जनगणना से अलग है क्यूंकि इसका उद्देश्य भारत में  रहने वाले  निवासियों का राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक पहचान डाटा बेस तैयार करना / रखना है।  जनगणना ( census ) व्यक्तियों की पहचान नहीं करती हैं।  हालाँकि जनगणना २०२१ में, यह अंतर नाममात्र भी नहीं होगा क्यूंकि सरकार द्वारा मोबाइल फोन एप्लीकेशन ( Mobile phone application ) के माध्यम से इसे संचालित  करने की योजना बनाई गयी है।


इसके अलावा भारत के रजिस्ट्रार जनरल के तहत जनगणना के आंकड़े केंद्र द्वारा रखे और बनाये जाते है, लेकिन NPR में डाटा एकत्र होने के बाद इन विवरण को ग्राम, वार्ड,  तहसील, जिला और राज्य  स्तर पर जनसंख्या रजिस्टर में रखा और बनाये रखा जायेगा ; साथ ही केंद्रीय स्तर  पर सभी आंकड़ों के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) का गठन किया जायेगा। 


आधार ( UID ) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ):-

आधार ( UID ) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) दोनों प्रतिद्वंदी योजनाओ की शुरुआत डॉ. मनमोहन सिंह की UPA सरकार के काल में हुई।  जब सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) प्रक्रिआ शुरू की तब पी. चिंदबरम  केंद्रीय गृहमंत्री थे जिन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) योजना को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया।

आधार ( UID ) सेवा / प्रक्रिया को तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा संचालित किआ जा रहा था। बाद में प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद वित्त मंत्रालय पी. चिंदबरम को स्थानांतरित / प्राप्त हो गया।  जिससे आधार ( UID ) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) प्रतिद्वंदता का अंत भी हुआ।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) और आधार ( UID ) दोनों योजनायें समवर्ती रूप से जनसांख्यिकी  और बायोमैट्रिक डाटा एकत्रित कर रही थी , प्रारम्भ में दोनों योजनाओ ने अपने उद्देश्य के रूप में  लोगों को लाभ और सेवाओं की बेहतर और लक्षित वितरण किया।  UIDAI ( भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ) और गृहमंत्रालय के कार्यों को संसाधनों के दोहराव और और अपव्यय  देखा गया।
हालाँकि यह विवाद UIDAI ( भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ) और गृहमंत्रालय के बीच एक समझौते पर समाप्त हुआ , जहाँ यह निर्णय लिया गया था कि NPR और UID डेटाबेस का इस्तेमाल विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जायेगा।  आधार ( UID ) कल्याणकारी सेवाएं प्रदान करेगा और NPR का उपयोग शासन के अन्य उद्देश्यों के लिए किया जायेगा।
यह भी तय किया गया कि  आधार के लिये पहले से नामांकित लोगों  को अपने बायोमैट्रिक विवरण देने की जरूरत नहीं है। 



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अन्य:-  CAA और NRC
       
             असम NRC

गुरुवार, 16 जनवरी 2020

नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता - रजिस्टर (NRC)

         नागरिकता (संशोधन) अधिनियम (CAA) और राष्ट्रीय नागरिकता - रजिस्टर (NRC) 



CAA  और NRC दोनों अलग विधि हैं। CAA संसद द्वारा निर्मित विधि है।  जबकि NRC के सन्दर्भ में विधि एवं उससे सम्बन्धित प्रक्रिया निर्माण अभी शेष है। असम और राष्ट्र व्यापी NRC में कोई भी सम्बन्ध नहीं है। असम  में जो NRC लागू  किया गया , वह '' असम  समझौते '' और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश अनुसार तैयार की गयी और प्रवर्तनीय की गई।  

किसी भी धर्म सम्भाव के व्यक्ति को CAA  और NRC से परेशान होने की कोई जरूरत नहीं है। 

NRC के सन्दर्भ में बनायीं जा रही विधि और प्रक्रिया का किसी भी धर्म से कोई सरोकार नहीं है।  यह भारत के सभी नागरिकों के लिए सामान रूप से होगा; NRC नागरिकों का एक प्रकार का रजिस्टर होगा जिसमें  देश के सभी नागरिकों  को अपना नाम दर्ज़ / अंकित कराना होगा। 

NRC का आधार धार्मिक - निरपेक्षता होगा। NRC जब भी प्रवर्तनीय कराया जायेगा तो वह धार्मिक आधार पर प्रवर्तनीय / लागू नहीं किया जायेगा। किसी भी नागरिक को सिर्फ इस आधार पर बाहर नहीं किया जा सकता है कि  वह किसी विशेष धर्म के प्रति सद्भावना रखता है। 


सर्वलौकिक है कि अभी राष्ट्रीय स्तर पर NRC जैसा कोई प्रावधान लागू नहीं किया गया है और न ही इसकी औपचारिक घोषणा की गयी है, और न ही इसके सन्दर्भ में कोई विधि निर्मित की गयी है। अगर आने वाले समय में कोई प्रावधान लाया जाता है तो वह सभी भारतीय नागरिकों  के लिया सामान होंगे।



असम NRC और १९७१ से पहले की वंशावली का प्रस्तुतीकरण :-

असम की  समस्या को पूरे देश से जोड़ना ठीक नहीं है। वहां घुसपैठियों की समस्या लम्बे समय से चली आ रही थी। इसके विरोध में वहां ५-६  वर्षों तक आंदोलन और संघर्ष चला। इस घुसपैठ की समस्या की वजह से तत्कालीन  राजीव गाँधी सरकार को १९८५ में समझौता करना पड़ा था। इसके तहत घुसपैठियों की  पहचान के लिए २५ मार्च १९७१ को कट ऑफ़ डेट मन गया ; जो NRC का आधार बना। 
जिसमे १९७१ से पहले के वंशावली को प्रस्तुत करना था जो कि  असम समझौता और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश के आधार पर था। 
असम  NRC और १९७१ से पहले की वंशावली का प्रस्तुतीकरण, राष्ट्र - व्यापी NRC से कोई सम्बन्ध नहीं है।  

१९७१ से पहले की वंशावली का प्रस्तुतीकरण-  ऐसा बिलकुल नहीं है १९७१ से पहले की वंशावली के लिए किसी को भी किसी प्रकार के दस्तावेज / प्रमाण-पत्र को प्रस्तुत करने कीआवश्यकता नहीं है। यह केवल असम NRC के लिए मान्य था वह भी ''असम समझौता '' और माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर। देश के शेष हिस्सों के लिए The citizenship (Registration of citizens and Issues of National Identity cards) Rule, 2003 के अनुसार NRC की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग है। 


नागरिकता के सन्दर्भ में प्रावधान:-  

नागरिकता नियम २००९के अनुसार, किसी भी व्यक्ति की नागरिकता किस प्रकर निश्चित की जाएगी, यह प्रावधान नागरिकता अधिनियम, १९५५ के आधार पर बना है। यह नियम सार्वजनिक  रूप से सभी के लिए सामान है। 

नागरिकता के आधार / तरीके:- 

                                        १. जन्म के आधार पर 
                                        २. वंश के आधार पर 
                                        ३. पंजीकरण के आधार पर 
                                        ४. भूमि विस्तार के आधार पर 
                                        ५. देशीयकरण के आधार पर 


स्वीकार्य दस्तावेज / प्रमाण-पत्र:-

हालाँकि इस सन्दर्भ में अभी स्वीकार्य दस्तावेजों की सूची की औपचारिक घोषणा नहीं हुई है। परन्तु इस सन्दर्भ में रिफ्यूजी प्रमाण-पत्र, मतदाता पहचान-पत्र, पासपोर्ट, आधार कार्ड, लाइसेंस, जन्म प्रमाण-पत्र,घर / भूमि के कागजात, बीमा के कागजात, या फिर इसी प्रकार के अन्य सरकारी दस्तवेजों को शामिल किये जाने की संभावना है। स्वीकार्य दस्तावेजों की लम्बी होने की संभावना है जिससे कि  किसी भी भारतीय नागरिक को परेशानी न हो। 

दस्तावेज न होने की स्थिति में:- 

पहचान साबित करने के लिए बहुत सामान्य दस्तावेज की जरूरत होगी। राष्ट्रीय स्तर  पर NRC की घोषणा होती है तो सर्कार ऐसे नियम और निर्देश तय करेगी जिससे किसी को परेशानी न हो। 
विधि निर्माताओं की यह मंशा बिलकुल नहीं है कि वह अपने नागरिकों को परेशान करें। 
दस्तावेज न होने की स्थिति में अधिकारी उस व्यक्ति को गवाह लेन की अनुमति देगा; साथ ही अन्य सबूतों और सामुदायिक प्रमाणीकरण आदि की अनुमति देंगे। एक उचित प्रक्रिया का पालन किया जायेगा। किसी भी भारतीय नागरिक को अनुचित परेशानी में नहीं डाला जा सकता। 
ऐसे लोग जो जो पढ़े - लिखे नहीं है, घर नहीं है, दस्तावेज नहीं है, गरीब है, और उनके पास पहचान का कोई आधार नहीं है; ऐसे लोग किसी न किसी आधार पर वोट डालते है और उन्हें सरकार की किसी न किसी कल्याणकारी योजना का मिला है उसी के आधार पर पहचान स्थापित की जाएगी। 



                                                          - आशुतोष सिंह 
                                                            




  

गुरुवार, 31 अक्तूबर 2019

ANTICIPATORY BAIL : SECTION 438 CRIMINAL PROCEDURE CODE,1973

                                                                What is Bail?

When you are arrested, you are taken into custody. This means that you are not free to leave the scene. Without being arrested, you can be detained, however, or held for questioning for a short time if a police officer or other person believes you may be involved in a crime.



                                                    What is Anticipatory Bail?


If a person believes that he may be arrested for non-bailable offences, he may apply to the High Court or Court of Session for Anticipatory Bail i.e, in the event of arrest, he shall be released on bail. While granting anticipatory bail, the court may impose a certain condition in the interest of justice and to ensure that no obstructions are created on the path to justice. The accused may have to take the permission of the court before leaving the country. The anticipatory bail is valid during the whole proceeding of the case unless cancelled earlier.



                                                            Which Section?

Section 438 of the Criminal Procedure Code empowers the High Court and the Session - Court to grant Anticipatory Bail i.e, a direction to release a person on bail issued even the person is arrested.


                                                          What Consideration?

*  nature and gravity of the accusation.
* ThThee antecedents of the applicants including the facts as to whether he has previously undergone imprisonment on conviction by a court in respect of any cognizable offence.
* The possibility of applicants fleeing from justice.
* Whether the accusations have been made within a view to injuring or humiliating the application.
* Whether there is a reason to believe that the petitioner may be arrested on an accusation of having committed to the non-bailable offence; and
* Whether it thinks fit that in the event of such arrest, he could be released on bail and also it may impose such conditions on the order, as it may think fit, in the light of the particular case.


                                                          What Condition?

* A condition that the person shall make himself available for interrogation by a police officer as and when required;
* A condition that the person shall not, directly or indirectly, make any inducement, threat or promise to any person acquainted with the facts of the case so as to dissuade him from disclosing such facts to the Court or to any police officer;
* A condition that the person shall not leave India without the previous permission of the Court.
* Such other conditions as may be imposed.


                                                   Which is Competence Court?

Under section 438 only the High Court & The Court of Session have been the jurisdiction to entertain an application for Anticipatory Bail. The next issue for consideration regarding jurisdiction under section 438 is as to whether the accused is supposed to move the Court of Session before applying to the High Court. The words used in the provision are 'High Court or the Court of Session'. Ordinarily, a matter is brought before the lowest court competent to hear it and therefore an application of Anticipatory bail may be made to the high court only after the court of session rejects it.
Under the provision, both courts are empowered to pass an order under section 438. The petitioner may choose one of the two courts and apply to the court of his choice.


                                                                When?

When any person apprehends that there is a move to get him arrested on false or trump upcharge, or due to enmity with someone, or he fears that a false case is likely to be built up against him. He has the right to move the Court of Session or High Court under section 438 of the Criminal Procedure Code for grant of bail in the event of his arrest, and the court may if it think fit, direct that in the event of such arrest, he shall be released on bail.


                                                       What discretion?


The Court has been given a wide discretion while deciding on such application because it is legislatively impossible to lay down all the possible cases where Anticipatory bail may be granted. Therefore, it is but natural that such competence is given only to the higher judiciary. As more experienced and more competent judges preside over such courts, it was intended this would act as a safeguard against any abuse of such powers in the favour of a connected accused.



Muzaffar Hussain Khan Vs. The State of Odisha - The applicant was a minister of the state and there was a prima facie case that he had fired a pistol inside a polling booth. He was refused an anticipatory bail on the grounds that there was a likelihood that the confidence of the public being shaken as the investigation may be interfered with if the application was allowed.

Balchand Jain Vs. The State of M.P.- The rule of prudence is that notice must have given to the other side before passing a final order under section 438 So that wrong order of Anticipatory bail is not obtained by a party by placing wrong/incorrect/misleading facts or suppressing material fact.



                                                            Conclusion

The code of Criminal Procedure, 1973 section 438, at the very outset is based on a clear nexus of personal liberty of the individual with the protection granted under the constitution of India Article 21. The law presumes an accused to be innocent till the guilt is proved and this is an important component of the right to a fair trial that an essential ingredient of right to life and personal liberty enshrined in article 21. Keeping in mind all these factors, section 438 seems to be in consonance with the principles enshrined in the Constitution.

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2019

RTI : RIGHT TO INFORMATION ACT, 2005

RIGHT TO INFORMATION ACT 2005

It is an act to provide for setting out the practical regime of right to information for citizens to secure access to information under the control of public authorities, in order to promote transparency and accountability in the working of every public authority, the constitution of a Central Information Commission and State Information Commissions and for matters connected therewith or incidental thereto.

This law was passed by Parliament on 15 June 2005 and came fully into force on 12 October 2005.

The first application was given to a Pune police station. Information disclosure in India was restricted by the Official Secrets Act 1923 and various other special laws, which the new RTI Act relaxes. It codifies a fundamental right of citizens.

SCOPE:-

The Act covers the whole of India except Jammu and Kashmir where J&K Right to Information Act is in force. It covers all constitutional authorities, including the executive, legislature and judiciary; any institution or body established or constituted by an act of Parliament or a state legislature. It is also defined in the Act that bodies or authorities established or constituted by order or notification of appropriate government including bodies.

Siya ram V. B.S.A., Shahjahanpur  -

"owned, controlled or substantially financed" by government, or non-Government organizations "substantially financed, directly or indirectly by funds" provided by the government are also covered in the Act.

FEES:-

A citizen who desires to seek some information from a public authority is required to send, along with the application, a (demand draft or a bankers cheque or ) payable to the Accounts

Officer of the public authority as fee prescribed for seeking information. If the person is from a disadvantaged community he/she need not pay. The applicant may also be required to pay further fee towards the cost of providing the information, details of which shall be intimated to the applicant by the PIO as prescribed by the RTI ACT. 

**NO FEE- BPL APPLICANT

The Applicant have to any pay additional fee for supply information as given below:-

Form of supply of information                                  Cost

A4 or A3 size paper                                               Rs.2/page + postage

Large size paper                                                     Actual

Samples/models                                                     Actual

For inspection of record                                     No fee for the first hrs.; Rs. 5/subsequent hrs.

Diskette/ floppy                                                      Rs.50 

WHAT IS INFORMATION ?

Information means any material in any form including records, documents, memos, e-mails, opinions, advices, press releases, circulars, orders, logbooks, contracts, reports, papers, samples, models, data material held in any electronic form and Information relating to any private body which can be accessed by a public authority under any other law for the time being in force - Section 2(f) of RTI act,2005

RECORD:-

Record includes

Any document, manuscript and fileAny microfilm, microfiche and facsimile copy of a documentAny reproduction of images embodied in such microfilm (whether enlarged or not); andAny other material produced by a computer or any other device.

KEY CONCEPT OF RTI-

    > Transparency & Accountability in the working of every public authority

The right of any citizen of India to request access to information and the corresponding duty of Govt. to meet the request, except the exempted information (Sec. 8/24)The duty of Govt. to pro-actively make available key information to all (Sec 4).

A responsibility on all sections: citizenry, NGOs, Media.

WHAT DOES RTI MEAN ?    section 2(j) RTI Act,20055

It includes the right to-

i. Inspect works, documents and records

ii. Take notes, extracts or certified copies of documents or records.

iii. Take certified samples of material

iv. Obtain information in form of printouts, diskettes, floppies, tapes, video cassettes or in any other electronic mode or through printouts.

 Can the Information Officer direct the applicant to consult the web or any such source where the information is readily available and wash off himself?

Answer: No. The applicant may be advised suitably. Yet, the Information Officer shall not supply the information in the manner requested by downloading it himself if necessary.

 Can the citizen ask for a copy of the application for appointment made by a certain Government servant?

Answer: Yes. Such request cannot be denied on the ground that it contains some personal matters not required to be disclosed.

 Can anyone ask the PIO to supply in his own answer script?

Answer: Yes.

PUBLIC AUTHORITY:- Section 2(H) 

It is any authority or body or institution of self government established or constituted...

 By or under the Constitution

 By any other law made by Parliament

 By any other law made by State Legislature

 By notification issued or order made by the appropriate Government, and includes any...

body owned, controlled or substantially financed,non-Government organization substantially financed, directly or indirectly by funds provided by the Govt. Adv.

Is University a public authority?

Answer: Yes. AIR 2006 NOC 145 (Kar.)

An institution receiving only grants for research, projects from the Govt. Of India, can be called a public authority?

Answer: Whether a public institution receiving grants for its administration or for specific projects , it is a public institution (Special Leave Application 30164/2008 dt. 5.1.2008 (Del.H.C.)).

Whether market committee is public authority?

Answer: Yes. (Agriculture Produce Market Committee vs. Meghraj Pundlikrao Dongre, AIR 2011 Bombay 48).

Whether schools and colleges receiving grants are public authorities?

Answer: Yes. (Shikshan Prasarak Mandal vs. State Information Commissioner, AIR 2011 (NOC) Bom. 137)

Public Information Officer:Section 5 of RTI Act,2005 

Public authorities have designated some of its officers as Public Information Officer.They are responsible to give information to a person who seeks information under the RTI Act.

PROCEDURE FOR OBTAINING INFORMATION: Section 6 of RTI Act,2005 

A person, who desires to obtain any information under this Act, shall make a request in writing or through electronic means in English or Hindi or in the official language of the area in which the application is being made, accompanying such fee as may be prescribed, to public authority by providing contact details.

Cause of Information:- [Section-6(2)of RTI Act,2005]

 An applicant making request for information shall not be required to give any reason for requesting the information or any other personal details except those that may be necessary for contacting him/her.

Transfer of Application to another Public Authority:- [Section- 6 (3) of RTI Act,2005] 

Where an application is made to a Public Authority requesting for information:

(i) Which is held by another public authority; or

(ii) The subject matter of which is more closely connected with the functions of another Public Authority

The Public Authority, to which such application is made, shall transfer the application or such part of it as may be appropriate to that other Public Authority and inform the applicant immediately about such transfer.

  >       Such application shall be transferred within 05 (Five) days from the date of                   receipt of the application. 

THE RTI ACT 2005 PROCESS:-

Application to be submitted in writing or electronically, with prescribed fee, to Public Information Officer (PIO),Envisages PIO in each department/agency to receive requests and provide information. Assistant PIO at sub- district levels to receive applications/appeals/ complaints. Forward to appropriate PIO. These will be existing officers.Information to be provided within 30 days; 48 hours where life or liberty is involved; 35 days where request is given to Asst. PIO, 40 days where third party is involved and 45 days for human rights violation information from listed security/ intelligence agencies under Schedule II.Time taken between intimation and acceptance of additional fees excluded from the time frame-sec 7(3)No action on application for 30 days is a deemed refusal-sec 7(2).No fee for delayed response-sec 7(6)

REGISTRATION PROCESS IN R.T.I COMMISSION:-

In R.T.I commission Registration done in following given steps:

1. Any citizen of Uttar Pradesh can request for information from any government sector organization.

2. After receiving the request P.I.O. has to register an Entry of that

3. Then PIO will send information as per the request of applicant.

4. If P.I.O. discovers that he cannot give that requested information Applicant

which was requested in that case he will reply that citizen that he cannot get information which he requested for.

5. If there is any complaint has been submitted by citizen for request then that complaint will be submitted by R.T.I Commission.

6. And that complaint should be examined by registrar,

7. Commission shall issue a notice for I.P.O. before 15 days of the hearing.

LIMITATION:-

Exemption for disclosure of information (Section 8).

Ground for rejection to access in certain cases (Section 9).

Act not to apply to certain organizations (sec-24) ( schedule II)

Exemption for disclosure of information:- Section 8 of RTI Act, 2005 

Sovereignty and integrity of IndiaPrevented by courtsBreach of parliamentTrade secret, Intellectual property etcFiduciary relationshipInformation received in confidence from foreign governmentLife and physical safety of any personIssue under investigationCabinet paperInvasion in privacy

GROUND FOR REJECTION TO ACCESS IN CERTAIN CASES:- Section 9 of RTI Act,2005 Section 9 of RTI Act,2005

Without prejudice to the provisions of section 8, a Central Public Information Officer or a State Public Information Officer, as the case may be, may reject a request for information where such a request for providing access would involve an infringement of copyright subsisting in a person other than the State.

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ACT NOT TO APPLY TO CERTAIN ORGANIZATIONS (SEC-24) - SCHEDULE-II[Schedule II (Section 24 of RTI Act,2005 ]

Intelligence and security organisation established by the Central Government:-

1. Intelligence Bureau.

2. Research and Analysis Wing of the Cabinet Secretariat.

3. Directorate of Revenue Intelligence.

4. Central Economic Intelligence Bureau.

5. Directorate of Enforcement.

6. Narcotics Control Bureau.

7. Aviation Research Centre.

8. Special Frontier Force.

9. Border Security Force.

10. Central Reserve Police Force.

11. Indo-Tibetan Border Police.

12. Central Industrial Security Force.

13. National Security Guards.

14. Assam Rifles.

15. Sashastra Seema Bal

16. Directorate General of Income Tax (Investigation)

17. National Technical Research Organization

18. Financial Intelligence Unit, India

19. Special Protection Group

20. Defence Research and Development Organization

21. Border Road Development Board

22. National Security Council Secretariat

23. Central Bureau of Investigation

24. National Investigation Agency

25. National Intelligence Grid

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                                          Sample - RTI application form

To,

       The public information officer

                 xxxxx

                 xxxxx

subject- Request for information under Right To Informaton Act, 2005

sir,

        I am requesting the following information in writing under section-6 of the Right To Informaton Act, 2005

1.xxxxxx

2.xxxxxxx

3.xxxxxxxxx

I hereby infrom that following formalities have been completed by me:

1.that belong to BPL families (see enclosure) person belonging to BPL family need not pay any type of fees.

2. that i am citizen of India and I am asking the information the 'citizen'

3. I hereby state that the information sought is not covered under the categories which are exempted from disclosure of information under section-8 or 9 of Right To Informaton Act, 2005.

NOTE:- Please do not disclose my name and address to other without my consent.

                                                                                                              Signature of applicant

                                                                                                     Address of correspondence

           Date:-                                                                                       Mr. xxxxxxx

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SHOULD POLITICAL PARTIES BE PLACED WITHIN THE PURVIEW OF RIGHT TO INFORMATION ACT, 2005

 Section [2(h)] of the RTI Act -

The subject matter in the present report is whether the political parties fall under the ambit/purview of the Right to Information Act, 2005 (hereinafter referred as "RTI Act") or not, without taking into consideration the order dated 03.06.2013 passed by the Central Information Commission (hereinafter referred as "CIC") and whether the same should be placed in the purview/ambit of RTI Act? The RTI Act empowers the citizens with the right to access information under the control of 'public authorities 

Accordingly, RTI Act creates a legal framework to make good this right by defining public authorities, allowing citizens to seek information from public authorities with regard to any information available with the said authorities in the form of record, imposing penalties on officials of public authorities upon failing to disclose 'information' defined in Section 2(f) as "any material in any form, including records, documents, memos, e-mails, opinions, advices, press releases, circulars, orders, logbooks, contracts, reports, papers, samples, models, data material held in any electronic form and information relating to any private body which can be accessed by a public authority under any other law for the time being in force".

The RTI Act also mandates that "every public authority shall proactively disclose information -pertaining to it, and maintain its documents and records to facilitate the right to information under the Act". Record[Section [2(i)] ] here means "

(i) Any document, manuscript and file,

(ii) Any microfilm, microfiche and facsimile copy of a document,

(iii) Any reproduction of image or images embodied in such microfilm

(Whether enlarged or not); and

(iv) Any other material produced by a computer or any other device".

Section 4 of the RTI Act mandates to the public authority certain obligations chief among them being to maintain all its records duly catalogued and indexed in a manner and the form which facilitates the right to information under this Act and ensure that all records that are appropriate to be computerised are, within a reasonable time and subject to availability of resources, computerised and connected through a network all over the country on different systems so that access to such records is facilitated.

The main object of the RTI Act is to promote transparency and accountability in the working of every public authority[ Preamble of the RTI Act ]. In the above stated provision it is important to state here about the "public authority", the definition given in the RTI Act under Section 2(h) is quoted below for ready reference:

"2 (h) "public authority" means any authority or body or institution of self-government established or constituted,-

(a) By or under the Constitution;

(b) By any other law made by Parliament;

(c) By any other law made by State Legislature;

(d) By notification issued or order made by the appropriate Government, and includes any-

(i) Body owned, controlled or substantially financed;

(ii) Non-Government Organisation substantially financed, directly or indirectly by funds provided by the appropriate Government."

The question of "who is a public authority?" is critical one because it sets the boundaries of the scope of the RTI Act specifically and the transparency regime in the country, more generally. In the past decade, a wide variety of entities otherwise considered to be private entities (such as schools, colleges and sports associations) have been declared as public authorities, and have had to comply with the requirements of the RTI Act.

Presently, under the RTI Act the political parties are not included in the definition of "public authority" and being so they are not in the purview of RTI Act. The political parties should be made part and parcel of RTI Act for the following reasons:

(i.) All political parties carry out their activities on the basis of the funds received from the various sources such as business groups, businessmen, general public, government officials, employees of the private concern etc. and in the election process almost all the parties spend huge amount and if RTI Act would be applied then in that event the entire picture with respect to creation of fund and expenditure of particular political party would be crystal clear before the public at large and it would also reduce funding by unauthorized means.

(ii.) Making the political parties within the purview of RTI Act would be in furtherance of transparency regime of the country.

(iii.) Political parties primarily engage in activities relating to public welfare and development of the country which serves as the primary objective of political parties and as such they are liable to be included under the RTI Act.

(iv.) Political parties carry out their activities in furtherance of providing constitutional rights to the public at large and being so the parties indirectly are performing the duty of public authority.

(v.) Act, 1951 (hereinafter referred as "RPA, 1951") and performs All the political parties are covered under the Representation of the People their activities within the four corners of the Constitution of India and the said Act and they are also getting the benefit under the Income Tax Act, 1961 (hereinafter referred as "ITA, 1961"), Section 13A, and moreover, the donors (Section 80 GGB and 80 GGC) are also taking benefit (exemption) of the ITA, 1961, the said part of revenue is directly related to the public at large of the country. Thus the political parties should be made part and parcel of Government.

(vi.) On coming to know the details of fund and expenditure of a political party, the Election Commission of India could be approached for issuing necessary direction or for taking necessary action against erring political party.

                   (vii.) Knowledge of the details of fund and expenditure of a political party would be in the interest of open debate, which is a right of a citizen guaranteed under Article 19(1)(a) of Constitution of India.

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                                                                                           :-ASHUTOSH SINGH CHAUHAN

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

WRIT (रिट) :- 1

[Writ (रिट) ; के संदर्भ में सामान्य जानकारी हिन्दी में]
                                                                  Writ (रिट)
संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में और अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में रिट ( writ ) याचिका दाखिल करने अधिकार नागरिकों को प्रदान किया गया है .
संविधान में निम्नलिखित आदेशों का उल्लेख ( Types of writs issued by courts ) है -
1 . बंदी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas corpus )
2 . परमादेश रिट ( Mandamus )
3 . प्रतिषेध रिट ( Prohibition )
4 . उत्प्रेषण लेख ( Writ of Certaiorari )
5 . अधिकार पृच्छा ( Quo warranto ).
1.बंदी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas corpus)
यह रिट उस प्राधिकारी ( authority ) के विरुद्ध दायर किया जाता है जो किसी व्यक्ति को बंदी बनाकर रखता है . इस रिट को जारी करके कैद करने वाले  अधिकारी को यह निर्देश दिया जाता है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय में पेश करे . इस रिट का उद्देश्य मूल अधिकार में दिए गए " दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण के अधिकार " का अनुपालन करना है . यह रिट अवैध बंदीकरण के विरुद्ध प्रभावी कानूनी राहत प्रदान करता है .
2. परमादेश रिट ( MANDAMUS )
यह रिट न्यायालय द्वारा उस समय जारी किया जाता है जब कोई लोक अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहन से इन्कार करे और जिसके लिए कोई अन्य विधिक उपचार ( कोई कानूनी रास्ता न हो ) प्राप्त न हो . इस रिट के द्वारा किसी लोक पद के अधिकारी के अतिरिक्त अधीनस्थ न्यायालय अथवा निगम के अधिकारी को भी यह आदेश दिया जा सकता है कि वह उसे सौंपे गए कर्तव्य का पालन सुनिश्चित करे .
3. प्रतिषेध रिट ( PROHIBITION )
यह रिट किसी उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती है . इस रिट को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को अपनी अधिकारिता के बाहर कार्य करने से रोका जाता है . इस रिट के द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को किसी मामले में तुरंत कार्रवाई करने तथा की गई कार्रवाई की सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया जाता है .
4. उत्प्रेषण लेख ( Writ Of Certaiorari)
यह रिट भी अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी किया जाता है . इस रिट को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास संचित मुकदमे के निर्णय लेने के लिए उस मुकदमे को वरिष्ठ न्यायालय अथवा उच्चतर न्यायालय को भेजें . उत्प्रेषण लेख का मतलब उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय में चल रहे किसी मुक़दमे के प्रलेख की समीक्षा मात्र है , इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उच्चतर न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध ही हो .
5. अधिकार पृच्छा ( Quo - Warranto )
इस रिट को उस व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है जो किसी ऐसे लोक पद  को धारण करता है जिसे धारण करने का अधिकार उसे प्राप्त नहीं है . इस रिट  द्वारा न्यायालय लोकपद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जाँच करता है . यदि उसका दावा निराधार है तो वह उसे पद से निष्कासन कर देता है . इस रिट के माध्यम से किसी लोक पदधारी को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश देने से रोका जाता है .
                - आशुतोष सिंह चौहान 

शनिवार, 25 अगस्त 2018

LANDMARK JUDGEMENTS THAT CHANGED THE COURSE OF INDIA

                                                         LAW IMPERIAL

1. JURY DECISION OVERTURNED BY HIGH COURT 

    (KM NANAWATI Vs. STATE OF MAHARASHTRA)- 1961

                                                                                                                                                                   

Hardly an open- and--shut case, the nature of the crime garnered media attention.

This case is notable for being the last case when a jury trial was held in India. KM Nanawati, a naval officer, murdered his wife's lover, Prem Ahuja. The jury ruled in favour of Nanawati and declared "not guilty" which was eventually set by the Bombay High Court.



2. AMENDMENT MASQUERADES AS LAW

    (IC GOLAKNATH Vs. STATE OF PUNJAB)- 1967

                                                                                                                                                                  

Parliament's prevented from taking away individual rights.

In the highly famous case of Golaknath Vs. State of Punjab in 1967 the S.C. ruled that Parliament could not curtail any of the Fundamental Right of Individuals mentioned in the Constitution, Parliament's overarching ambitions nipped in the bud (Keshvanand Bharti vs. State of Karnataka) 1973.



3. ELECTED REPRESENTATIVE CANNOT BE GIVEN THE BENEFIT OF DOUBT

                                                                                                                                                                   

A highly notable case  which introduced the concept of  "Basic Structure of  the Constitution of India' and declared that those points decided as basic structure could not be amended by the parliament. The case was triggered by the 42nd Amendment Act.


4. BEGINNING OF THE FALL OF INDIRA GANDHI

    ( INDIRA GANDHI Vs. RAJ NARAIN) - 1975

                                                                                                                                                                  

The trigger that led to the imposition of emergency. In this landmark case regarding election disputes, the primary issue was the validity of clause 4 of the 39th amendment Act. The Supreme Court held clause 4 as unconstitutional and void on the ground that it was outright denial of the right to equality enshrined in Article 14. The Supreme Court also added the following features as "Basic features" laid down in Keshvanand Bharti Case - Democracy, judicial review, Rule of law and jurisdiction of Supreme Court under Article 32.


5. A STEP BACKWARD FOR INDIA

    (ADM JABALPUR Vs. SHIVKANT SHUKLA CASE) -1976

                                                                                                                                                                   

Widely considered a violation of Fundamental Rights. In this landmark judgement, the Supreme Court declared that the rights of citizens to move the court for violation of Article 14, 21 and 22 would remain suspended during emergencies. triumph of individual liberty (Menka Gandhi Vs. UOI) 1978. 

जिलाधिकारी (DM) और पुलिस अधीक्षक (SP) के बीच कार्यक्षेत्र और प्राधिकरण के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए संविधान, विधिक प्रावधान और प्रशासनि...