रविवार, 26 फ़रवरी 2023

up tenancy act 2021

 उ.प्र. नगरीय परिसर किरायेदारी विनियमन अधिनियम, 2021(अधिनियम संख्या 16/2021)

अधिनियमित तिथि - 24 अगस्त 2021
प्रवर्तन तिथि - 11 जनवरी 2021
 अध्याय -7
कुल धाराएं - 46
अनुसूची - 2


Question - अधिनियम(1972) 2021की प्रकृति और विशेषताएं और उद्देश्य :-


1. यह अधिनियम नए स्वरूप में स्थाई प्रकृति का है।
2. इस अधिनियम के प्रावधानों के अधीन कोई कार्रवाई नियत प्राधिकारी के समक्ष दाखिल की जाएगी, न कि सिविल न्यायालय के।
3. इस अधिनियम के प्रावधानों के अध्ययन विनिर्दिष्ट आधारों पर बेदखली के लिए आवेदन किराया प्राधिकारी को किया जाएगा। 

विशेषताएं :-
1.किरायेदारों और भू-स्वामी को किराया प्राधिकरण को सूचित करना होता है जब वे किरायेदारी करार को निष्पादित करते हैं। यदि एक पक्ष सूचित करने में विफल रहता है, तो दूसरा पक्ष एक महीने के बाद किराया प्राधिकरण को सूचित कर सकता है ताकि वह किराए के प्राधिकरण के साथ समझौते के रिकॉर्ड को स्थापित करने में मदद करे।
2. किरायेदारी करार के तहत प्रभार हैं जो सुरक्षा जमा का भुगतान नियमित किया गया है। पहले, सुरक्षा जमाराशि(secuirty deposit) स्वरूप 2-6 माह का किराया जमा कराने का प्रावधान था । नए अधिनियम के अनुसार आवासीय परिसर के लिए सुरक्षा जमाराशि (secuirty deposit) दो महीने के किराये से अधिक नहीं। गैर-आवासीय परिसर के लिए इसे 6 महीने का किराया प्रतिभूति के रूप में जमा कराया जा सकता है ।

3.यदि किरायेदार, किराये करार की समाप्ति के बाद किरायेदारों को खाली करने में विफल रहते हैं, तो पार्टियों को नई शर्तों पर पट्टे का विस्तार या नवीनीकृत करने का विकल्प दिया गया है या यदि किरायेदार पट्टे को नवीनीकृत करने में विफल रहता है, तो मकान मालिक को किराए के अधिकार से संपर्क करने और निष्कासन की तलाश करने का अधिकार है।

4. यह अधिनियम एक सुरक्षा जाल देता है और घर खरीदारों का विश्वास बढ़ाता है, जो किराये की आय को ध्यान में रखते हुए अचल संपत्ति में निवेश करते हैं।

5. भू-स्वामी, बिजली और पानी जैसी आवश्यक आपूर्ति में कटौती करते थे जब किरायेदार किराए का भुगतान करने में असमर्थ थे। अब यह नहीं किया जा सकता है। यदि भू-स्वामी ऐसा करता है, तो किरायेदार तुरंत अंतरिम निर्देशों के लिए किराया प्राधिकरण से संपर्क कर सकता है और अधिकारी ऐसी आवश्यक सेवाओं की तत्काल बहाली का आदेश दे सकते हैं।

6. आवासीय संपत्ति के मामले में, वार्षिक किराया 5% से अधिक नहीं बढ़ सकता है और गैर-आवासीय क्षेत्रों के लिए वार्षिक किराया 7% से अधिक नहीं बढ़ सकता है। 

7. अधिनियम किरायेदारों को एक ढाल प्रदान करता है क्योंकि वे उपबंधों के अतिरिक्त अन्य किसी भी तरह से बेदखल नहीं किए जा सकते। और भू-स्वामी के अन्य उपबंधों के अधीन नहीं होंगे।

8. यदि किसी मामले में, भू-स्वामी किराए को अनुपातहीन स्तर तक बढ़ाने की कोशिश करता है, किरायेदारों को अधिनियम की धारा 10 के तहत किराया प्राधिकरण से संपर्क कर सकते हैं और फिर किराया प्राधिकरण नए किराये का निर्धारण करेगा जो बाजार दर के साथ सराहनीय होगा। 

9. किराएदारी करार को और करार का लिखित में होना अधिनियम में अनिवार्य कर दिया गया है। 

10. किरायेदारी से संबंधित मामलों के निस्तारण के लिए अधिनियम में किराया प्राधिकरण(धारा - 30)और अधिकरण(धारा - 32) में व्यवस्था की गयी है। 


उद्देश्य:-
परिसर की किरायेदारी को विनियमित करने, भू-स्वामियों तथा किरायेदारों के हितों को संरक्षित करने और विवादों के समाधान हेतु त्वरित न्याय निर्णयन प्रणाली का उपबन्ध करने और उससे सम्बन्धित या आनुषंगिक मामलों का उपबन्ध करने हेतु किराया प्राधिकरण और किराया अधिकरण की स्थापना करने के लिये दिनांक 31 मार्च, 2021 के पश्चात् भी पूर्वोक्त अध्यादेश के उपबन्धों को प्रवृत्त रखने के लिये एक नयी किरायेदारी विधि लाये जाने का विनिश्चय किया गया।
 


Question - मानक किराया निर्धारण और किराया पुनरीक्षण (Determination of standard rent and rent revision )


मानक किराया - मानक किराया की कोई परिभाषा इस नये अधिनियम में नहीं दी गयी है ;परन्तु up urban building (rent regulation, control and eviction) Act, 1972 की धारा 3 (ट) मानक किराया" , धारा 6, 8 और 10 के प्रावधानों के अधीन, का अर्थ है-

नंबर (i) पुराने अधिनियम द्वारा शासित भवन के मामले में और इस अधिनियम के प्रारंभ के समय किराए पर दिया गया-

(ए) जहां इस तरह के प्रारंभ के साथ-साथ एक उचित वार्षिक किराया [जो इस अधिनियम में वही अर्थ है जो पुराने अधिनियम की धारा 2 (एफ) में है, अनुसूची में पुन: प्रस्तुत किया गया है] दोनों के लिए देय एक सहमत किराया है। सहमत किराया, या उचित वार्षिक किराया प्लस उस पर 25 प्रतिशत, जो भी अधिक हो;

(बी) जहां कोई सहमत किराया नहीं है, लेकिन एक उचित वार्षिक किराया है, उचित किराया प्लस 25 प्रतिशत;

(सी) जहां न तो सहमत किराया है और न ही उचित वार्षिक किराया, धारा 9 के तहत निर्धारित किराया;

(ii) किसी अन्य मामले में, उस समय के लिए मूल्यांकित किराया मूल्य, और निर्धारण की अनुपस्थिति में, धारा 9 के तहत निर्धारित किराया;

सामान्य शब्दों में कहें तो मानक किराया से तात्पर्य ऐसे किराये राशि से है जो पक्षकारों के मध्य सभी उचित मूल्यांकन के उपरान्त, नैसर्गिक उपबंधों के अनुरूप युक्तियुक्त होना चाहिए।


मानक किराया निर्धारण प्रक्रिया -  

मानक किराया निर्धारण के संदर्भ में प्रत्यक्ष रूप से इस अधिनियम में कुछ भी नहीं कहा गया है, परन्तु किराया पुनरीक्षण में ऐसी ही प्रक्रिया का उपबंध किया गया है। नये अधिनियम में मानक किराया निर्धारण के उपबंध न होकर किराया पुनरीक्षण के उपबंध दिए गए हैं, इनका उपयोग किसी विवाद स्तिथि के निस्तारण के लिए किराया प्राधिकरण द्वारा किया जाएगा। 
 
up urban building (rent regulation, control and eviction) 1972 की धारा 9 के अनुसार मानक किराये का निर्धारण :- 
                             अधिनियम की धारा 9 के अंतर्गत मानक किराए के अवधारण पर प्रकाश डाला गया है इस धारा का प्रयोजन जिला मजिस्ट्रेट को मानक किराए के अवधारण के लिए सशक्त करना है। इस धारा में उन परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है, जब जिला मजिस्ट्रेट के सम्मुख कोई आवेदन इस संबंध में प्रस्तुत किया जाता है वह उस पर भली प्रकार विचार करता है और ऐसा विचार करने के पश्चात अपने निष्कर्ष प्रस्तुत करता है। 

मानक किराया भी निश्चित करते समय जिला मजिस्ट्रेट को निम्न बातों पर भली प्रकार विचार करना पड़ता है। 

1. इस अधिनियम के प्रवृत्त होने के दिनांक या किराए पर उठाने के दिनांक जो भी बाद वाले के ठीक पहले भवन और उसके स्थल का बाजार मूल्य;
2. भवन के निर्माण, उसकी सुरक्षा और मरम्मत संबंधी लागत आदि;
3. उक्त दिनांक के पहले उसी भवन की भाँति अन्य भवन की प्रचलित कीमत;
4. भवन में विद्यमान सुख सुविधा और;
5. कोई अन्य सुसंगत तथ्य। 

उपरोक्त बातों पर विचार करते हुए जिला मजिस्ट्रेट साधारणतया उक्त दिनांक को भवन के बाजार मूल्य के 10% प्रतिवर्ष को उसका मानक किराया समझेगा और मासिक मानक किराया आकलित वार्षिक मानक किराया के 12वें भाग के बराबर होगा। 



जिला मजिस्ट्रेट जब अपना निष्कर्ष उपरोक्त रूप में प्रस्तुत कर देता है तो उसका निष्कर्ष अपील के परिणाम के अधीन रहते हुए अंतिम होगा। 
यह एक सामान्य ज्ञान की बात है कि किसी शहरी भवन की बाजार कीमत 1 वर्ष से दूसरे वर्ष बढ़ ही जाता है परिणामतः भवन का स्वामी किराए की राशि में वृद्धि की बात करता है। 
शब्द "अवधारण" इस बात पर बल देता है कि जिला मजिस्ट्रेट को मानक राशि का विनिश्चय धारा 9 की उपधारा 2 मे वर्णित परिस्थितियों के अधीन करना पड़ता है। इस निमित्त अपना निष्कर्ष प्रस्तुत करने के पूर्व जिला मजिस्ट्रेट को मामले के तथ्यों परिस्थितियों पर भली प्रकार विचार करना पड़ता है, इस विषय में जिला मजिस्ट्रेट को भवन के बाजार मूल्य को भी ध्यान में रखना पड़ता है। 
जिला मजिस्ट्रेट को अपना विवेक प्रयोग करते समय, मानक किराये को अभिनिश्चित करते समय निम्न बातों पर ध्यान रखना पड़ता है। 
  I. निर्माण में आयी लागत
 II. भवन की देखभाल की लागत 
III. भवन की मरम्मत की लागत


किराया पुनरीक्षण और वाद की स्थिति में किराया पुनरीक्षण 

किराया पुनरीक्षण - भूस्वामी तथा किरायेदार के बीच किराये का पुनरीक्षण, किरायेदारी करार के अनुसार होगा। धारा 9(1)
जहां किरायेदारी के आरंभ के बाद , भूस्वामी कार्य आरंभ होने के पूर्व किरायेदार के साथ लिखित में करार कर चुका है और किरायेदार द्वारा कब्जा किए गए परिसर में सुधार, जोड़ या संरचनात्मक परिवर्तन करने के लिए खर्चा कर चुका है, जो धारा 15 के अधीन कार्यान्वित की जाने वाली मरम्मत को सम्मिलित नहीं करता है तो भूस्वामी परिसर का किराया उतनी रकम से बढ़ा सकेगा जो भूस्वामी और किरायेदार के बीच सहमत हुई हो, और किराये में ऐसी वृद्धि ऐसे कार्य के पूर्ण होने के एक माह के बाद प्रभावी होगी। धारा 9(2)


इस अधिनियम के प्रारंभ के पूर्व लिखित करार के अधीन किराए पर दिया गया हो तो अधिनियम के प्रारंभ होने के दिनांक से आगे के 2 वर्षो की अवधि के लिए निम्नलिखित तरीकों से पुनरीक्षित(निर्धारित) किए जाने के योग्य होगा। धारा 9(3)

क. जहां परिसर दिनांक 15/07/1972 के पूर्व किराए पर दिया गया लोग इसे 15/07/1972 से किराए पर समझा जाएगा। 

ख. जहां परिसर को दिनांक 15/07/1972 को या उसके पश्चात किराए पर दिया गया हो वह किराया पुनरीक्षित किए जाने का दिनांक किराएदारी प्रारंभ होने के दिनांक के 1 वर्ष के बाद का होगा। 

उपरोक्त मामलें में संदेय (भुगतान योग्य) किराये की दर आवासीय संपत्ति के मामले में, वार्षिक किराया 5% से अधिक नहीं बढ़ सकता है और गैर-आवासीय क्षेत्रों के लिए वार्षिक किराया 7% से अधिक नहीं बढ़ सकता है। यह वृद्धि, चक्रवृद्धि रूप में होगी। 

परन्तु यह कि उपरोल्लिखित किसी भी बात के होते हुए भी पूर्वोक्त उपबंध में उपदर्शित सूत्र के अनुसार संदेय पुनरीक्षित किराया इस अधिनियम के प्रारंभ होने के दिनांक से निम्न अनुसार संदेय होगा-
 क. पहले वर्ष के लिए इस प्रकार गणना किए गए किराया का आधा
ख. दूसरे वर्ष के लिए इस प्रकार गणना की गयी संपूर्ण किराया राशि

धारा 3(1) के प्रावधानों के होते हुए भी जिसमें कोई निर्दिष्ट परिसर() किसी किराएदार को किराए पर दिया गया हो ऐसे परिसर का भू-स्वामी भी धारा 9(3) के उपबंधों के अनुसार किराया पुनरीक्षण का हकदार होगा और इस अधिनियम के सुसंगत प्रावधान ऐसे मामले में लागू होंगे। धारा 9(4)

इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले से प्रारम्भ किराएदारी के मामले में भूस्वामी किराएदार को लिखित रूप में सूचना देकर धारा 9(3) के अधीन विनिर्दिष्ट रूप से बढ़ी हुई किराया राशि की मांग करेगा। 
इस प्रकार बढ़ा हुआ किराया राशि सूचना प्राप्त से 30 दिन के भीतर संदेय होगा और ऐसी स्थिति में किरायेदार  करार संशोधित समझा जाएगा और बढ़ा हुआ किराया धारा 8 के अनुसार संदेय होगा। 

इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पूर्व की अवधि के लिए पूर्वोक्त बढ़े हुए किराए का कोई बकाया संदेय या वसूली योग्य नहीं होगा। धारा 9(6)

इस अधिनियम के प्रारंभ से पहले को करार नहीं था, तो भू-स्वामी और किरायेदार किराए की बढ़ी हुई दर पर किराएदारी करार निष्पादित करने के लिए परस्पर सहमत हो सकते हैं और ऐसा करने में विफल होने पर किराया प्राधिकरण  धारा 10 के उपबंधों के अनुरूप किराया वृद्धि को निर्धारित करेगा। परंतुक धारा 9(5)

विवाद की स्थिति में किराया प्राधिकरण द्वारा किराया पुनरीक्षण-धारा 10

1. किराया - पुनरीक्षण(निर्धारण) के सम्बंध में भूस्वामी और किरायेदार के मध्य किसी विवाद की स्थिति में, किराया प्राधिकरण, भूस्वामी या किरायेदार द्वारा किये गये आवेदन पर, किरायेदार द्वारा संदेय पुनरीक्षित किराये और अन्य प्रभारों का निर्धारण कर सकता है और ऐसा दिनांक भी नियत कर सकता है जिस दिनांक से ऐसा पुनरीक्षित किराया संदेय होगा । 
2. पुनरीक्षित(निर्धारित) किए जाने वाले किराया अवधारण करने में किराया प्राधिकरण किराया पर दिये गये आस-पास के क्षेत्रों में प्रचलित बाजार दर से मार्गदर्शित हो सकता है।
(और निम्न पर भी विचार करेगा - 
A. भवन के निर्माण उसकी सुरक्षा और मरम्मत संबंधित लागत आदि. 
B. उक्त दिनांक के पहले उसी भवन की भांति अन्य भवनों की प्रचलित कीमत
C. भवन में विद्यमान सुख - सुविधा 
D. कोई अन्य सुसंगत तथ्य।) 
3. इस धारा के अधीन एक बार कोई अवधारण कर दिये जाने के पश्चात् नये सिरे से अवधारण हेतु कोई आवेदन, उक्त अवधारण के पश्चात् एक वर्ष की अवधि तक नहीं किया जायेगा। 
4. किराया प्राधिकरण, किराया पुनरीक्षण(निर्धारण) की कार्यवाहियों के दौरान अनन्तिम किराया अवधारित कर सकता है जो अन्तिम अवधारण के अध्यधीन होगा ।




Question :अधिनियम किन क्षेत्रों या स्थानों में लागू होगा और किन में नहीं 

अधिनियम 2021, सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश में प्रवृत्त होगा। 




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