सोमवार, 14 नवंबर 2022

lokniti

लोक नीति विश्लेषण

लोकनीति अथवा सार्वजनिक नीति वह नीति है जिसके अनुसार राज्य के प्रशासनिक कार्यपालक अपना कार्य करते हैं। बहुत से विचारको का मत है कि लोक प्रशासन, लोकनीति को लागू करने और उसकी पूर्ति करने के लिए लागू की गई गतिविधियों का योग है।
जन समस्याओं एवं मार्गों के समाधान के लिए सरकार द्वारा जो नीति बनाई जाती है वे लोक नीतियां कहलाती है।
1937 में में लोकनीति को हावर्ड विश्वविद्यालय के लोक प्रशासन स्नातक पाठ्यक्रम में शामिल किया गया
लोक नीति की शुरुआत के बारे में डेनियम मैक्कुल का कहना है कि लोकनीति के अध्ययन की शुरुआत 1922 में हुई
भारत में औपचारिक रूप से 1894 में बनी राष्ट्रीय वन नीति पहली लोकनीति मानी जाती है
लोकनीति की प्रकृति ( Nature of democracy)
लोक नीति की प्रकृति मुख्यतः सरकारी है लेकिन गैर सरकारी संस्थाएं लोक नीति निर्माण ( Public policy making) की प्रक्रिया को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करते हैं।

लोकनीति वैधानिक व बाध्यकारी होती है यह वास्तव में सरकार द्वारा किया जाने वाला कार्य है।

लोकनीति के प्रकार

मूलभूत और बुनियादी नीतियां
नियंत्रक नीतियां
वितरण संबंधी नीतियां
पूंजीकरण नीतियां
क्षेत्रक नीतियां
नीति निर्माण की प्रक्रिया

नीति निर्माण में निम्नलिखित प्रक्रियाए शामिल होती हैं यह प्रक्रिया विभिन्न सरकारी अंगों तथा गैर सरकारी माध्यमों के से संपन्न होती हैं जो निम्नलिखित हैं
राजनीतिक कार्यपालिका (Political executive)
प्रशासनिक तंत्र( Administrative system)
विधायिका( Legislature)
न्यायपालिका( Judiciary)

दबाव एवं हित समूह
राजनीतिक दल(Political party)
लोकमत(Public opinion)
जनसंचार माध्यम(Mass media)
सामाजिक आंदोलन(Social movement)
अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां( International agencies)

नीति निर्माण में प्रशासन तंत्र की भूमिका तीन क्रियाओं में बांटी जाती है
सूचना देना
परामर्श देना
विश्लेषण करना

लोकनीति का क्रियान्वयन
लोक नीति के क्रियान्वयन के अध्ययन की शुरुआत हेराल्ड लासवेल ने अपने ग्रंथ मैं सबसे पहले 1956 में की थी।

लोकनीति क्रियान्वयन के चरण इसके अंतर्गत तीन चरण हैं।

पहला चरण 1970 के दशक में लोक नीति के क्रियान्वयन पक्ष को महत्वपूर्ण मानते हुए केस स्टडी पर बल दिया
दूसरा चरण 1980 के दशक से प्रारंभ हुआ इसके तहत लोकनीति क्रियान्वयन में पद पर सोपानिक क्रियान्वन पक्ष पर अधिक आनुभविक दृष्टि से अध्ययन पर बल दिया जाने लगा
तीसरा चरण यह चरण 1990 के दशक से माना जाता है इस चरण में लोकनीति के क्रियान्वयन को अधिक वैज्ञानिक बनाने पर बल दिया गया है यह पीढ़ी लोकनीति क्रियान्वयन की जटिलता को समझने और उसके समाधान हेतु सिद्धांतों का समर्थन करती है
लोकनीति क्रियान्वयन में बाधाएं
सामान्य नीतियाँ तो बहुत अच्छी होती है लेकिन उसका क्रियान्वयन सही ढंग से नहीं हो पाता है
नीति क्रियान्वयन में प्रमुख समस्याएं निम्नलिखित है

त्रुटिपूर्ण नीति
क्रियान्वयन अधिकारियों का जमीनी हकीकत में अपरिचित
विशिष्ट वर्गों की अवरोधक भूमिका
भ्रष्टाचार
जागरूकता का अभाव
आंतरिक सुरक्षा की समस्या
बुनियादी ढांचे का अभाव
लोक नीति के उद्देश्य एवं निर्णय
उद्देश्य नीतियों के लक्ष्य होते हैं।यह वांछित परिणाम है जिसे समाज या सरकार प्राप्त करने की कोशिश करती है।
निर्णय चयन की एक क्रिया है ये दो प्रकार की हो सकती है

1 कार्यक्रमबद्ध
2 गैर कार्यक्रमबद्ध

लोक नीति का मूल्यांकन
मूल्यांकन के अंतर्गत यह पता लगाया जाता है कि जिन व्यक्तियों क्षेत्रों समूहों के लिए नीति निर्माण और क्रियान्वयन किया गया था क्रियान्वयन के बाद उन लोगों को लाभ हुआ या नहीं और जो उद्देश्य व लक्ष्य निर्धारित किए गए थे वह उनकी प्राप्ति में किस हद तक सफल हुए हैं

भारत में लोक नीति मूल्यांकन की कुछ महत्वपूर्ण संस्थाएं निम्नलिखित हैं

नीति आयोग
संसदीय समिति
नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक
राजनीतिक दल
मीडिया गैर
सरकारी संगठन
अनुसंधान संस्थान
विश्वविद्यालय

लोकनीति मूल्यांकन के तीन प्रकार होते हैं

1 प्रशासनिक मूल्यांकन
2 न्यायिक मूल्यांकन
3 राजनीतिक मूल्यांकन

डेनियल मूल्यांकन की तीन विधियां बताइए है
प्रक्रिया मूल्यांकन
प्रभाव मूल्यांकन
समग्र मूल्यांकन

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