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गुरुवार, 2 सितंबर 2021

2020 कुछ महत्वपूर्ण संवैधानिक निर्णय-सार (some important landmark constitutional judgment)

1. बी . के रविचन्द्र और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य 

स्रोत - सिविल अपील संख्या 1460 वर्ष 2010

निर्णय तिथि -24 नवम्बर , 2020 

खण्डपीठ - इन्दिरा बनर्जी और एस . रवीन्द्र भाट , न्यायमूर्तिगण । 

प्रावधान -अनुच्छेद 300 क - अपीलार्थी की भूमि सरकारी उपयोग हेतु अधिग्रहीत करके उसे 33 वर्षों तक अपने कब्जे में रखने और अपीलार्थी को नियत समय के भीतर समुचित प्रतिकर भी न दिए जाने के विरुद्ध रिट याचिका की पोषणीयता एवं उपचार । 

निर्णयसार - यद्यपि सम्पत्ति का अधिकार भारत के संविधान के भाग ।।। के अन्तर्गत संरक्षित अब ( 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम , 1978-20-6-1979से ) एक मूल अधिकार नहीं है , फिर भी अनुच्छेद 300 क के अन्तर्गत शक कीमती संविधानिक अधिकार ( a valuable consti 301tutional righty है । विधि के प्राधिकार के बिना लॉटरी व्यक्ति को उसके सम्पत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है या उसके उपयोग को विनियिमित नहीं किया जा सकता है ( राजस्थान राज्य बनाम बसंत नहटा 2005 ) 12 एस सी सी 77 ) । तदनुसार सरकार याची की भूमि वापस करने और 33 वर्षों से उसके भूमि पर काबिज रहने के एवज में प्रतिकर देने के लिए निर्देशित।

2. स्किल लोट्टो सॉल्यूशन्स प्रा . लि . बनाम भारत संघ और अन्य 

स्रोत - रिट याचिका ( सिविल ) संख्या 961 वर्ष 2018 निर्णय तिथि -03 दिसम्बर , 2020 । RUICE - ULT ( 2020 ) SCJ 16 AIR 2020 SC 870 ( online )

 पूर्णपीठ - अशोक भूषण , आर . सुभाष रेड्डी और एम . आर . शाह , न्यायमूर्तिगण । 

प्रावधान -अनुच्छेद 32,14,19 ( 1 ) ( छ ) , 301 और 304 - क्या पंजाब राज्य द्वारा संयोजित अपीलार्थी कम्पनी द्वारा किए जा रहे लॉटरी के विक्रय और वितरण पर केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम , 2017 के धारा 2 ( 52 ) के अर्थान्वयन में कर लगाया जाना अनुच्छेद 14 और 19 ( 1 ) ( छ ) , 301 और 304 का उल्लंघन करता हैं ? तदनुसार याचिका की पोषणीयता । 

निर्णयसार - संविधान ( 101 वाँ संशोधन ) अधिनियम , 2016 के द्वारा संविधान में जोड़े गए अनुच्छेद 246 क , 269 क और 279 क के प्रभाव में संसद द्वारा निर्मित केन्द्रीय वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम , 2017 ( अधिनियम संख्या 12 वर्ष 2017 ) , जो दिनांक 12.04.2017 से प्रवृत्त है , के धारा 2 ( 52 ) में दी गई वस्तु की परिभाषा के अन्तर्गत ' लॉटरी ' एक अनुयोज्य दावा ' के रूप में माना जायेगा , तदनुसार केन्द्र सरकार लॉटरी के विक्रय और वितरण पर वस्तु एवं सेवा कर लगाने में सक्षम एवं सशक्त नहीं होता है । तदनुसार याचिका निरस्त ।

3.सौरव यादव और अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और अन्य 
एस . एल . पी . ( सिविल ) संख्या 23223 वर्ष 2018 में विविध आवेदन संख्या 2641 वर्ष 2019 ( साथ में रिट याचिका ( सिविल ) संख्या 237 वर्ष 2020 ) । 

निर्णय तिथि -18 दिसम्बर , 2020

पूर्णपीठ - उदय उमेश ललित , एस . रवीन्द्र भाट और हृषिकेश राय , न्यायमूर्तिगण । 

प्रावधान- ( अनुच्छेद 16 ( 1 ) और 15 ( 3 ) तथा अनुच्छेद 16 ( 4 ) -महिलाओं , शारीरिक रूप से विकलांग इत्यादि के पक्ष वदत्त क्षैतिज आरक्षण तथा एस सी , एस टी और ओ बी सी वर्ग को उपलब्ध लम्बवत् आरक्षण में संघर्ष की स्थिति में चयन का विकल्प अर्थात् अपनायी या लागू किए जाने वाले आरक्षण की व्यवस्था , प्रकृति एवं विशेषताएं । ( i ) अनुच्छेद 16 ( 1 ) और 15 ( 3 ) तथा 16 ( 4 ) -यदि आरक्षित श्रेणी की कोई महिला जो आरक्षण कोटे का दावेदार है , एक खुली प्रतियोगिता परीक्षा में सामान्य वर्ग की चयनित महिला से अधिक अंक प्राप्त करती है , किन्तु वह चयन से बाहर हो जाती है , क्योंकि वह आरक्षित श्रेणी का दावेदार थी और उसऔर पिछड़ा श्रेणी का कट - ऑफ सामान्य श्रेणी के कट - ऑफ से अधिक था , तब क्या वह अपने मेरिट के आधार पर अनारक्षित श्रेणी में चयनित होने का दावा कर सकती है ? 

निर्णय सार- ( 1 ) अनुच्छेद 16 ( 4 ) के अन्तर्गत वर्ग को प्रदत्त आरक्षण को लम्बवत आरक्षण ( सामाजिक ) और अनुच्छेद 16 ( 1 ) और 15 ( 3 ) के अन्तर्गत शारीरिक रूप से दिव्यांग या महिलाओं इत्यादि के लिए । आरक्षण को क्षतिज आरक्षण ( विशेष ) कहा जा सकता है । क्षैतिज आरक्षण लम्बवत् आरक्षण को सीधे काटता है - जिसे इन्टरलॉकिंग आरक्षण कहा जाता है । ऐसे पिछड़ा वर्ग का अभ्यर्थी अनारक्षित पदों के लिए स्पर्धा कर | सकता है और यदि वे अपने मेरिट के आधार पर अनारक्षित पद पर नियुक्त होते हैं , तब उनकी संख्या को सम्बन्धित पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित कोटा के विरुद्ध गवाना ( काउंट ) नहीं किया जायेगा ...... पूरा आरक्षित कोटा अप्रभावित रहेगा और खुली प्रतियोगिता में चयनित उम्मीदवार के आलावा वह उपलब्ध रहेगा ( इन्दिरा साहनी बनाम भारत संघ ( 1992 ) 3 एस सी सी 217 Suppl . का निर्णय ) , किन्तु लम्बवत् आरक्षण को लागू ऊपर्युक्त सिद्धान्त क्षैतिज आरक्षण को लागू नहीं होंगे । ( 2 ) अनारक्षित श्रेणी ( open categori ) कोई कोटा नहीं होता है , बल्कि वास्तव में यह सभी महिला और पुरुष के लिए एक समान रूप से उपलब्ध रहता है । पुरुषों के लिए कोई कोटा नहीं होता है । 3 ) ऊपर्युक्त के बिचार में , इस मामले में , अन्य पिछड़ा वर्ग के वे , महिला अभ्यर्थी , जिन्होंने सामान्य / खुला श्रेणी अन्तिम चयनित उम्मीदवार द्वारा प्राप्त अंक अर्थात् 274.8928 , से अधिक अंक प्राप्त किया है , को उत्तर प्रदेश सिपाही भर्ती में नियोजित किया जाय और उनके इस चयन से रिक्त हुए उनके सीट को उसी वर्ग के निम्नतर अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थी से भरा जाय । तदनुसार आदेशित / निर्देशित ।

4.प्रदीप कुमार संथालिया बनाम धीरज प्रसाद साहू @ धीरज साहू और एक अन्य 

स्रोत - सिविल अपील संख्या 611 वर्ष 2020 ( साथ में सिविल अपील संख्या 2159 वर्ष 2020 ) ।

निर्णय तिथि -18 दिसम्बर 2020.

पूर्णपीठ - मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस . ए बाबड़े और एस . बोपन्ना एवं वी . रामासुब्रमनियम , न्यायमूर्तिगण ।

प्रावधान -अनुच्छेद 191 ( 1 ) ( ङ ) , 193 और 80 ( 4 ) यदि एक विधान सभा सदस्य , जिसने राज्य सभा के चुनाव में अपने मताधिकार के प्रयोग में प्रातः 9:15 बजे मतदान किया और उसी दिन दोपहर बाद लगभग 2:30 बजे तक न्यायालय ने उसे दोषसिद्ध करते हुए अनेक अपराधों के लिए सजा दिया जिनमें दो वर्ष से अधिक के कारावास का भी दण्ड था और चुनाव परिणाम उसी दिन रात 12 बजे के बाद घोषित किया गया तब क्या विधायक को सदन के निर्योग्य मानते उसके मतदान को निरस्त किया जा सकता है ?

 निर्णयसार - विधान सभा सदस्य श्री अमित कुमार महतो के द्वारा दिनांक 23.03.3018 को प्रातः 9:15 बजे दिए गए मत को ठीक ही एक वैध मत माना गया था , क्योंकि अनुच्छेद 191 ( 1 ) ( ङ ) सपठित धारा 8 ( 3 ) जनप्रतिधित्व अधिनियम के बिचार में , दोषसिद्धि दोषसिद्ध एवं दण्डादिष्ट किया गया , न कि उस तिथि के प्रारम्भ के समय अर्थात् 12 : 1 AM बजे से । तदनुसार अपील निरस्त। 

5.बालाजी बलीराम मुपाड़े और एक अन्य बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य 

स्रोत - सिविल अपील संख्या 3564 वर्ष 2020 ( @ एस एल पी ( सिविल ) संख्या 11626 वर्ष 2020 ) । 

निर्णय तिथि -29 अक्टूबर , 2020

खण्डपीठ - संजय किशन कौल और हृषिकेश राय , न्यायमूर्तिगण । 

प्रावधान - अनुच्छेद 21- ( i ) क्या बहस समाप्त होने के तिथि से 9 महीने बाद निर्णय सुनाये जाने से सम्बन्धित व्यक्ति के किसी मूल अधिकार का उल्लंघन होता है ? ( ii ) अतिविलम्ब से निर्णय सुनाए जाने पर याची को उपलब्ध उपचार । 

निर्णय सार - अनिल राय बनाम बिहार राज्य ( 2001 ) 7 एस सी सी 318 में स्थापित विधि के बिचार में न्याय प्रदान में विलम्ब भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है । तदनुसार निर्णय घोषित किए जाने के लिए जारी दिशा - निर्देश के तहत उच्च न्यायालय के द्वारा आरक्षित रखे गए निर्णय को सामान्यतया बहस पूरा हो जाने की तिथि से दो महीने के भीतर घोषित कर दिया जाय । तीन महीने के बाद भी निर्णय न सुनाए जाने पर पक्षकार उच्च न्यायालय में इस आशय का आवेदन कर सकता है कि निर्णय शीघ्र घोषित किया जाय और 6 महीने बाद उच्च न्यायालय में आवेदन दिया जा सकता है कि मामले को फिर से सुनकर निर्णय घोषित किया जाय । तदनुसार इस मामले में , 9 महीने बाद भी उच्च न्यायालय के द्वारा आरक्षित निर्णय घोषित न किए जाने पर नये पीठ द्वारा मामले को सुनकर निर्णय घोषित किए जाने हेतु निर्देशित।


6.इन रीः प्रशान्त भूषण और अन्य 

स्रोत - स्वप्रेरणा अवमानना याचिका ( दा . ) संख्या 1 वर्ष 2020

निर्णय तिथि -31 अगस्त , 2020 ।


पूर्णपीठ - अरुण मिश्रा , बी . आर . गवई और कृष्ण मुरारी , न्यायमूर्तिगण । 

प्रावधान - अनुच्छेद 129 और 142 - उच्चतम न्यायालय की अवमानना के लिए दोषी घोषित अवमानकर्ता को दण्डित किया जाना । 

निर्णय सार - अवमानकर्ता ट्वीटर पर अपने कथित ट्वीट के द्वारा इस न्यायालय की अवमानना करने का दोषी पाया गया है , फिर भी दण्डादेश से बचने के लिए उसे अपने कृत्यों पर खेद प्रकट करने का अनेक अवसर दिया गया , किन्तु उसने इससे बचने का प्रयास किया । यदि अवमानकर्ता के कृत्यों पर संज्ञान नहीं लिया जाता तो इससे अधिवक्ताओं एवं वादकारियों में गलत संदेश जायेगा इसलिए , अवमानकर्ता पर यह न्यायालय दण्डस्वरूप एक रुपये का जुर्माना अधिरोपित करती है , जिसे रजिस्ट्री में 15.09.2020 तक जमा कराया जाय , जिसमें विफल रहने पर अवमानकर्ता तीन माह तक साधारण कारावास भुगतेगा और उसके बाद इस न्यायालय में प्रेक्टिस करने से तीन वर्ष तक वंचित रहेगा । तद्नुसार आदेशित ।


शनिवार, 25 अगस्त 2018

LANDMARK JUDGEMENTS THAT CHANGED THE COURSE OF INDIA

                                                         LAW IMPERIAL

1. JURY DECISION OVERTURNED BY HIGH COURT 

    (KM NANAWATI Vs. STATE OF MAHARASHTRA)- 1961

                                                                                                                                                                   

Hardly an open- and--shut case, the nature of the crime garnered media attention.

This case is notable for being the last case when a jury trial was held in India. KM Nanawati, a naval officer, murdered his wife's lover, Prem Ahuja. The jury ruled in favour of Nanawati and declared "not guilty" which was eventually set by the Bombay High Court.



2. AMENDMENT MASQUERADES AS LAW

    (IC GOLAKNATH Vs. STATE OF PUNJAB)- 1967

                                                                                                                                                                  

Parliament's prevented from taking away individual rights.

In the highly famous case of Golaknath Vs. State of Punjab in 1967 the S.C. ruled that Parliament could not curtail any of the Fundamental Right of Individuals mentioned in the Constitution, Parliament's overarching ambitions nipped in the bud (Keshvanand Bharti vs. State of Karnataka) 1973.



3. ELECTED REPRESENTATIVE CANNOT BE GIVEN THE BENEFIT OF DOUBT

                                                                                                                                                                   

A highly notable case  which introduced the concept of  "Basic Structure of  the Constitution of India' and declared that those points decided as basic structure could not be amended by the parliament. The case was triggered by the 42nd Amendment Act.


4. BEGINNING OF THE FALL OF INDIRA GANDHI

    ( INDIRA GANDHI Vs. RAJ NARAIN) - 1975

                                                                                                                                                                  

The trigger that led to the imposition of emergency. In this landmark case regarding election disputes, the primary issue was the validity of clause 4 of the 39th amendment Act. The Supreme Court held clause 4 as unconstitutional and void on the ground that it was outright denial of the right to equality enshrined in Article 14. The Supreme Court also added the following features as "Basic features" laid down in Keshvanand Bharti Case - Democracy, judicial review, Rule of law and jurisdiction of Supreme Court under Article 32.


5. A STEP BACKWARD FOR INDIA

    (ADM JABALPUR Vs. SHIVKANT SHUKLA CASE) -1976

                                                                                                                                                                   

Widely considered a violation of Fundamental Rights. In this landmark judgement, the Supreme Court declared that the rights of citizens to move the court for violation of Article 14, 21 and 22 would remain suspended during emergencies. triumph of individual liberty (Menka Gandhi Vs. UOI) 1978. 

जिलाधिकारी (DM) और पुलिस अधीक्षक (SP) के बीच कार्यक्षेत्र और प्राधिकरण के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए संविधान, विधिक प्रावधान और प्रशासनि...