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शनिवार, 16 अक्तूबर 2021

संविधान की प्रस्तावना और उसमें निहित शब्दों के अर्थ।

प्रत्येक संविधान का अपना दर्शन होता है। हमारे संविधान के पीछे जो दर्शन है उसके लिए हमे पंडित जवाहर लाल नेहरू के उस ऐतिहासिक उद्देश्य - संकल्प की ओर दृष्टिपात करना होगा जो संविधान सभा ने 22 जनवरी, 1947 को अंगीकार किया था, और जिससे आगे सभी चरणों में संविधान को रूप देने में प्रेरणा मिली है।

42 वें संविधान संशोधन अधिनियम , 1976 द्वारा इसमें समाजवादी , पंथनिरपेक्ष और अखंडता जैसे शब्दों को सम्मिलित किया गया । 

यथा संशोधित उद्देश्य - संकल्प (प्रस्तावना) इस प्रकार हैं :-

                        प्रस्तावना
" हम भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्त्व संपन्न, समाजवादी पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये तथा इसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता
प्रतिष्ठा और अवसर की समता 
प्राप्त कराने के लिये तथा उन सब में 
व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता सुनिश्चित करने वाली 
बंधुता बढ़ाने के लिये 
दृढ़ संकल्पित होकर अपनी इस संविधान सभा में आज दिनांक 26 नवंबर, 1949 ई . (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद्द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।" 

 
पण्डित नेहरू के शब्दों में उपर्युक्त संकल्प "संकल्प से कुछ अधिक है यह एक घोषणा है, एक दृढ़ निश्चय है, एक प्रतिज्ञा है, एक वचन है और हम सभी के लिए एक समर्पण है। उक्त संकल्प मे जिन आदर्शों को रखा गया है वे संविधान की उद्देश्यिका मे दिखाई पड़ते है। 1976 मे यथा संशोधित इस उद्देश्यिका मे संविधान के ध्येय और उसके उद्देश्यों का संक्षेप में वर्णन है।"
उद्देश्यिका (प्रस्तावना) से दो प्रयोजन सिद्ध होते हैं। 
1. प्रस्तावना यह बताती है कि संविधान के प्राधिकार का स्त्रोत क्या है? 
2. प्रस्तावना यह भी बताती है कि संविधान किन उद्देश्यों को संवर्धित या प्राप्त करना चाहता है। 

 प्रस्तावना में उल्लेखित मुख्य शब्दों के अर्थ : 
हम भारत के लोग 
इसका तात्पर्य यह है कि भारत एक प्रजातांत्रिक देश है तथा भारत के लोग ही सर्वोच्च संप्रभु है , अतः भारतीय जनता को जो अधिकार मिले हैं वही संविधान का आधार है अर्थात् दूसरे शब्दों में भारतीय संविधान भारतीय जनता को समर्पित है।  

संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न 
इस शब्द का आशय है कि , भारत ना तो किसी अन्य देश पर निर्भर है और ना ही किसी अन्य देश का डोमिनियन है । इसके ऊपर और कोई शक्ति नहीं है और यह अपने आंतरिक और बाहरी मामलों का निस्तारण करने के लिए स्वतंत्र हैं । 
भारतीय संविधान भारतीयों (संविधान निर्मात्री सभा) द्वारा बनाया गया है, न कि ब्रिटिश संसद की देन है। इस बात मे यह पूर्ववर्ती भारतीय शासन अधिनियम से भिन्न है। इसे भारत के लोंगो ने एक प्रभुत्वसंपन्न संविधान सभा मे समावेत अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से अधिकथित किया था। यह सभा अपने देश के राजनैतिक भविष्य को अवधारित करने के लिए सक्षम थी। 
गोपालन बनाम मद्रास राज्य, (1950) एस. सी. आर. 88 (198)
बेरुबाड़ी मामला, ए. आई. आर. 1960 एस. सी. 845 (846)

समाजवादी 
समाजवादी शब्द का आशय यह है कि ऐसी संरचना जिसमें उत्पादन के मुख्य साधनों , पूँजी , जमीन , संपत्ति आदि पर सार्वजनिक स्वामित्व या नियंत्रण के साथ वितरण में समतुल्य सामंजस्य है ।
42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा उद्देश्यिका (प्रस्तावना) me समाजवादी शब्द सम्मिलित करके यह सुनिश्चित किया गया था कि भारतीय राज्य-व्यवस्था का ध्येय समाजवाद है। समाजवाद के ऊंचे आदर्शों को अभिव्यक्त रूप से दर्शित करने के लिए इसे सम्मिलित किया गया। 
भारतीय संविधान द्वारा परिकल्पित समाजवाद, राज्य के समाजवाद का वह सामन्य ढांचा नहीं है। जिसमें धन के सभी साधनों का राष्ट्रीयकरण किया जाता है और प्राइवेट सम्पत्तियों का उत्सादन हो जाता है। श्रीमती इंदिरा गांधी ने इसे स्पष्ट करते हुए कहा था - 
                                "हमने सदैव कहा है कि हमारा समाजवाद अपने ढंग का है। हम उन्हीं क्षेत्रों मे राष्ट्रीयकरण करेंगे जिनमे हम आवश्यकता समझते है केवल राष्ट्रीयकरण, यह हमारा समाजवाद नहीं है।" 
एक्सेलवियर बनाम भारत संघ, ए. आई. आर. 1979 एस. सी. पैरा 24
नकारा बनाम भारत संघ, ए. आई. आर. 1983 एस. सी. पैरा 33-34

पंथनिरपेक्ष  
पंथनिरपेक्ष राज्य जो सभी धर्मों की स्वतंत्रता प्रत्याभूत करता है। 
' पंथनिरपेक्ष राज्य ' शब्द का स्पष्ट रूप से संविधान में उल्लेख नहीं किया गया था तथापि इसमें कोई संदेह नहीं है कि , संविधान के निर्माता ऐसे ही राज्य की स्थापना करने चाहते थे । इसलिए संविधान में अनुच्छेद 25 से 28 ( धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ) जोड़े गए । भारतीय संविधान में पंथनिरपेक्षता की सभी अवधारणाएँ विद्यमान है अर्थात् हमारे देश में सभी धर्म समान हैं और उन्हें सरकार का समान समर्थन प्राप्त है । 

लोकतांत्रिक 
शब्द का इस्तेमाल वृहद रूप से किया है , जिसमें न केवल राजनीतिक लोकतंत्र बल्कि सामाजिक व आर्थिक लोकतंत्र को भी शामिल किया गया है। व्यस्क मताधिकार , समाजिक चुनाव , कानून की सर्वोच्चता , न्यायपालिका की स्वतंत्रता , भेदभाव का अभाव भारतीय राजव्यवस्था के लोकतांत्रिक लक्षण के स्वरूप हैं । 

गणतंत्र 
प्रस्तावना में गणराज्य ' शब्द का उपयोग इस विषय पर प्रकाश डालता है कि दो प्रकार की लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं ' वंशागत लोकतंत्र ' तथा ' लोकतंत्रीय गणतंत्र ' में से भारतीय संविधान अंतर्गत लोकतंत्रीय गणतंत्र को अपनाया गया है। गणतंत्र में राज्य प्रमुख हमेशा प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित समय के लिये चुनकर आता है । 

गणतंत्र के अर्थ में दो और बातें शामिल हैं। 
पहली यह कि राजनीतिक संप्रभुता किसी एक व्यक्ति जैसे राजा के हाथ में होने के बजाय लोगों के हाथ में होती हैं । 
दूसरी यह कि किसी भी विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग की अनुपस्थिति । इसलिये हर सार्वजनिक कार्यालय बगैर किसी भेदभाव के प्रत्येक नागरिक के लिये खुला होगा । 

स्वतंत्रता 
यहाँ स्वतंत्रता का तात्पर्य नागरिक स्वतंत्रता से है। स्वतंत्रता के अधिकार का इस्तेमाल संविधान में लिखी सीमाओं के भीतर ही किया जा सकता है । यह व्यक्ति के विकास के लिये अवसर प्रदान करता है।

न्याय 
न्याय का भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लेख है , जिसे तीन भिन्न रूपों में देखा जा सकता है सामाजिक न्याय , राजनीतिक न्याय व आर्थिक न्याय ।  
सामाजिक न्याय से अभिप्राय है कि मानव - मानव के बीच जाति , वर्ण के आधार पर भेदभाव न माना जाए और प्रत्येक नागरिक को उन्नति के समुचित अवसर सुलभ हो । 
आर्थिक न्याय का अर्थ है कि उत्पादन एवं वितरण के साधनों का न्यायोचित वितरण हो और धन संपदा का केवल कुछ ही हाथों में केंद्रीकृत ना हो जाए ।
राजनीतिक न्याय का अभिप्राय है कि राज्य के अंतर्गत समस्त नागरिकों को समान रूप से नागरिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त हो , चाहे वह राजनीतिक दफ्तरों में प्रवेश की बात हो अथवा अपनी बात सरकार तक पहुंचाने का अधिकार । 

समता 
भारतीय संविधान की प्रस्तावना हर नागरिक को स्थिति और अवसर की समता प्रदान करती है जिसका अभिप्राय है समाज के किसी भी वर्ग के लिए विशेषाधिकार की अनुपस्थिति और बिना किसी भेदभाव के हर व्यक्ति को समान अवसर प्रदान करने की उपबंध । 
बंधुत्व 
इसका शाब्दिक अर्थ है भाईचारे की भावना प्रस्तावना के अनुसार बंधुत्व में दो बातों को सुनिश्चित करना होगा । पहला व्यक्ति का सम्मान और दूसरा देश की एकता और अखंडता । मौलिक कर्तव्य में भी भाईचारे की भावना को प्रोत्साहित करने की बात कही गई है ।

बुधवार, 22 जनवरी 2020

राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (Natioanl Population Register - NPR)

हम भारत्त के लोग से अभिप्राय, भारत की जनता  अर्थात भारत के नागरिकों से हैं। भारत अपने नागरिकों को घुसपैठियों से अलग परिभाषित , चिन्हित , और प्रतिष्ठित करता है;
 वे विधियाँ ;  नागरिकता अधिनियम,१९५५ (कई बार संशोधित),
                    विदेशी अधिनयम, १९४६
                    पासपोर्ट अधिनयम, १९२० हैं।

भारत में रहने वाला प्रत्येक गैर - नागरिक एक घुसपैठिया या अवैध प्रवासी है, अगर वह एक पर्यटक या राजनायिक नहीं है।
विदेशी अधिनियम के अनुसार भारत के सभी घुसपैठियों या अवैध प्रवासियों को निष्कासित करना सरकार का कर्त्तव्य है।  अवैध प्रवासियों या घुसपैठियों का अनुमान लगन उतना ही उपमेयमन है जितना अर्थ-व्यवस्था में काले  धन के प्रचलन का अनुमान लगाना है, जबकि दोनों ही भारतीय व्यवस्था में मौजूद हैं।

इस कहानी की शुरुआत वर्तमान परिवेश में तब हुई जब केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने  नागरिकता ( संशोधन ) अधिनयम ,२०१९ के चर्चा के दौरान राष्ट्रीय स्तर पर नागरिकों का रजिस्टर ( NRC ) के प्रावधान लेन की घोषणा की।
नागरिकता ( संशोधन ) अधिनियम,२०१९ के विरोध में कई जगह पर कई स्थानों पर विरोध (हिंसक) प्रदर्शन जारी है। इसी के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation) पर विवाद छिड़ गया।  पश्चिम बंगाल और  केरल सरकारों ने  राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation)  कार्य को स्थागित करने की घोषणा की हैं। अब घटनाओं  की यह प्रक्रिया गैर - बीजेपी शासित राज्यों ने भी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation) की प्रक्रिया का विरोध शुरू कर दिया है।  राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation) की प्रक्रिया कई उलझनों में रह गयी है , समय के साथ जनगणना के लिए गिनती तेजी से शुरू हो गयी है। जनगणना के साथ ही राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के अद्यतन (updation) का डाटा भी डोर टू डोर चरण प्रक्रिया के द्वारा की जानी है।


क्या हाल  ही पारित नागरिकता ( संशोधन ) अधिनियम, २०१९ (CAA) राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) से सम्बंधित है ?

इसका  जवाब हाँ या नहीं दोनों हो सकते है। इसका सीधा सम्बन्ध नहीं है यह इस पर निर्भर करता है कि  सरकार राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के लिए एकत्रित डाटा का उपयोग किस प्रकार करती है जिसकी वर्तमान समय में कोई घोषणा नहीं की गयी है।   




                      राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (Natioanl Population Register - NPR)

 राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) देश के सामान्य निवासियों  का रजिस्टर है। यह नागरिकता अधिनियम, १९५५ और नागरिकता ( नागरिकों का  पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र ) नियम, २००३ के प्रावधानों के तहत स्थानीय (local) ( ग्राम/उप-टाउन ), उप-जिला, जिला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जा रहा है।
भारत के प्रत्येक सामान्य निवासी को NPR में पणिकरान करना अनिवार्य है। एक सामान्य निवासी को NPR के उद्देश्यों के लिए परिभाषित किया जाता है, जो पिछले ६ महीने या उससे अधिक समय में स्थानीय क्षेत्र में रहता है या एक व्यक्ति जो अगले महीने या उससे अधिक  समय तक उस क्षेत्र में निवास करने का इरादा रखता है।

उद्देश्य :- NPR का उद्देश्य भारत के हर निवासी का राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक राष्ट्रीय पहचान डेटाबेस तैयार करना है।  डेटाबेस में जनसांख्यिकी के साथ-साथ बायोमैट्रिक विवरण शामिल  होंगे।

प्रत्येक सामान्य निवासी के लिए निम्नलिखित जनसांख्यिकी विवरण आवश्यक हैं।
१. व्यक्ति का नाम
२. घर के मुखिया से रिश्ता
३. पिता का नाम
४. माता का नाम
५. पति का नाम (यदि विवाहित है )
६. लिंग
७. जन्म-तिथि
८. वैवाहिक स्थिति  
९. जन्म-स्थान
१०. राष्ट्रीयता (घोषित के रूप में )
११. सामान्य निवास का वर्तमान पता
१२. वर्तमान पते पर रहने अवधि
१३. स्थायी निवास पता
१४. व्यवसाय/गतिविधि
१५. शैक्षणिक योग्यता



राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) के लिए सर्वप्रथम डाटा २०१० में भारत की जनगणना के गृह -गृह चरण व्यवस्था के साथ एकत्र किया गया।  इस डाटा का अद्यतन ( updation ) २०१५ के दौरान डोर-टू-डोर सर्वे करके किया गया था। अद्यतन (upadate ) जानकारी का डिजटलीकरण पूरा हो गया है।
अब असम को छोड़कर सभी राज्यों / केंद्रशासित प्रदेशों में अप्रैल-सितम्बर २०२० के दौरान जनगणना - २०२१ के गृह-गृह चरण के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) को अद्यतन ( update ) करने का निर्णय लिया गया है। इस आशय की राजपत्र अधिसूचना केंद्र - सरकार द्वारा पहले ही प्रकाशित की जा चुकी है।


राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) और नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर ( NRC ) की वैधानिकता -


१९५५ के नागरिकता अधिनियम में  संशोधन कर उसमे एक  नई धारा 14a जोड़ी गयी।  जो राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने से सम्बंधित है।

नागरिकता अधिनियम की धारा 14a:-

       राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करना-
(१) केंद्र सरकार अनिवार्य रूप से भारत के प्रत्येक नागरिक को पंजीकृत कर सकती है और उसे राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी कर सकती है।
(2) केंद्र सरकार भारतीय नागरिकों के एक राष्ट्रीय रजिस्टर को बनाए रख सकती है और इस उद्देश्य के लिए एक राष्ट्रीय पंजीकरण प्राधिकरण की स्थापना करती है।
(३) नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, २००३ के प्रारंभ होने की तारीख से, रजिस्ट्रार जनरल, भारत, बर्थ एंड डेथ्स एक्ट, १ ९ ६ ९ के पंजीकरण की धारा ३ की उप-धारा (१) के तहत नियुक्त (१ from) 1969) राष्ट्रीय      पंजीकरण प्राधिकरण के रूप में कार्य करेगा और वह नागरिक पंजीकरण के रजिस्ट्रार जनरल के रूप में कार्य करेगा।
(4) केंद्र सरकार ऐसे अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों को नियुक्त कर सकती है, जो अपने कार्यों और जिम्मेदारियों के निर्वहन में रजिस्ट्रार जनरल ऑफ सिटीजन रजिस्ट्रेशन की सहायता के लिए आवश्यक हो सकते हैं।
(५) भारत के नागरिकों के अनिवार्य पंजीकरण में अपनाई जाने वाली प्रक्रिया निर्धारित की जाएगी।

यह प्रक्रिया नागरिकता ( नागरिकों का पंजीकरण और राष्ट्रीय पहचान पत्र ) नियम, २००३ के नियम ३(४) और नियम ४(१) के अनुसार होंगे।



जनगणना ( Census ) और  राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ):-

भारत में जनगणना निर्णायक है। इसमें भारत की जनसंख्या के बारे में सामान्य डाटा एकत्रित करने के उद्देश्य के रूप में एक विस्तृत प्रश्नावली शामिल है। २०२१ की जनगणना में प्रगणक को लाइन क्रमांक, भवन संख्या, जनगणना मकान नम्बर, जनगणना मकान में फर्श, दीवार और छत में प्रयुक्त सामग्री, जनगणना मकान के उपयोग का पता ( वास्तविक आदि ), आयु, लिंग, वैवाहिक स्थिति, व्यवसाय, धर्म, जन्म-स्थान, विकलांगता, मातृभाषा और यदि वे अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति वर्ग जैसे  ३४ विवरण / प्रश्न शामिल होंगे।

NPR प्रक्रिया व्यक्तियों / नागरिकों के जनसांख्यिकीय और बायोमैट्रिक विवरण को एकत्रित करती है। NPR और जनगणना ( census ) दोनों प्रक्रियाओं में डोर टू डोर गणना शामिल है। लेकिन NPR इस  जनगणना से अलग है क्यूंकि इसका उद्देश्य भारत में  रहने वाले  निवासियों का राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक पहचान डाटा बेस तैयार करना / रखना है।  जनगणना ( census ) व्यक्तियों की पहचान नहीं करती हैं।  हालाँकि जनगणना २०२१ में, यह अंतर नाममात्र भी नहीं होगा क्यूंकि सरकार द्वारा मोबाइल फोन एप्लीकेशन ( Mobile phone application ) के माध्यम से इसे संचालित  करने की योजना बनाई गयी है।


इसके अलावा भारत के रजिस्ट्रार जनरल के तहत जनगणना के आंकड़े केंद्र द्वारा रखे और बनाये जाते है, लेकिन NPR में डाटा एकत्र होने के बाद इन विवरण को ग्राम, वार्ड,  तहसील, जिला और राज्य  स्तर पर जनसंख्या रजिस्टर में रखा और बनाये रखा जायेगा ; साथ ही केंद्रीय स्तर  पर सभी आंकड़ों के साथ राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) का गठन किया जायेगा। 


आधार ( UID ) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ):-

आधार ( UID ) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) दोनों प्रतिद्वंदी योजनाओ की शुरुआत डॉ. मनमोहन सिंह की UPA सरकार के काल में हुई।  जब सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) प्रक्रिआ शुरू की तब पी. चिंदबरम  केंद्रीय गृहमंत्री थे जिन्होंने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) योजना को आक्रामक रूप से आगे बढ़ाया।

आधार ( UID ) सेवा / प्रक्रिया को तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी द्वारा संचालित किआ जा रहा था। बाद में प्रणव मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद वित्त मंत्रालय पी. चिंदबरम को स्थानांतरित / प्राप्त हो गया।  जिससे आधार ( UID ) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) प्रतिद्वंदता का अंत भी हुआ।
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर ( NPR ) और आधार ( UID ) दोनों योजनायें समवर्ती रूप से जनसांख्यिकी  और बायोमैट्रिक डाटा एकत्रित कर रही थी , प्रारम्भ में दोनों योजनाओ ने अपने उद्देश्य के रूप में  लोगों को लाभ और सेवाओं की बेहतर और लक्षित वितरण किया।  UIDAI ( भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ) और गृहमंत्रालय के कार्यों को संसाधनों के दोहराव और और अपव्यय  देखा गया।
हालाँकि यह विवाद UIDAI ( भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण ) और गृहमंत्रालय के बीच एक समझौते पर समाप्त हुआ , जहाँ यह निर्णय लिया गया था कि NPR और UID डेटाबेस का इस्तेमाल विभिन्न उद्देश्यों के लिए किया जायेगा।  आधार ( UID ) कल्याणकारी सेवाएं प्रदान करेगा और NPR का उपयोग शासन के अन्य उद्देश्यों के लिए किया जायेगा।
यह भी तय किया गया कि  आधार के लिये पहले से नामांकित लोगों  को अपने बायोमैट्रिक विवरण देने की जरूरत नहीं है। 



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अन्य:-  CAA और NRC
       
             असम NRC

शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

WRIT (रिट) :- 1

[Writ (रिट) ; के संदर्भ में सामान्य जानकारी हिन्दी में]
                                                                  Writ (रिट)
संविधान के अनुच्छेद 32 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय में और अनुच्छेद 226 के अधीन उच्च न्यायालय में रिट ( writ ) याचिका दाखिल करने अधिकार नागरिकों को प्रदान किया गया है .
संविधान में निम्नलिखित आदेशों का उल्लेख ( Types of writs issued by courts ) है -
1 . बंदी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas corpus )
2 . परमादेश रिट ( Mandamus )
3 . प्रतिषेध रिट ( Prohibition )
4 . उत्प्रेषण लेख ( Writ of Certaiorari )
5 . अधिकार पृच्छा ( Quo warranto ).
1.बंदी प्रत्यक्षीकरण ( Habeas corpus)
यह रिट उस प्राधिकारी ( authority ) के विरुद्ध दायर किया जाता है जो किसी व्यक्ति को बंदी बनाकर रखता है . इस रिट को जारी करके कैद करने वाले  अधिकारी को यह निर्देश दिया जाता है कि वह गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय में पेश करे . इस रिट का उद्देश्य मूल अधिकार में दिए गए " दैहिक स्वतंत्रता के संरक्षण के अधिकार " का अनुपालन करना है . यह रिट अवैध बंदीकरण के विरुद्ध प्रभावी कानूनी राहत प्रदान करता है .
2. परमादेश रिट ( MANDAMUS )
यह रिट न्यायालय द्वारा उस समय जारी किया जाता है जब कोई लोक अधिकारी अपने कर्तव्यों के निर्वहन से इन्कार करे और जिसके लिए कोई अन्य विधिक उपचार ( कोई कानूनी रास्ता न हो ) प्राप्त न हो . इस रिट के द्वारा किसी लोक पद के अधिकारी के अतिरिक्त अधीनस्थ न्यायालय अथवा निगम के अधिकारी को भी यह आदेश दिया जा सकता है कि वह उसे सौंपे गए कर्तव्य का पालन सुनिश्चित करे .
3. प्रतिषेध रिट ( PROHIBITION )
यह रिट किसी उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी की जाती है . इस रिट को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को अपनी अधिकारिता के बाहर कार्य करने से रोका जाता है . इस रिट के द्वारा अधीनस्थ न्यायालय को किसी मामले में तुरंत कार्रवाई करने तथा की गई कार्रवाई की सूचना उपलब्ध कराने का आदेश दिया जाता है .
4. उत्प्रेषण लेख ( Writ Of Certaiorari)
यह रिट भी अधीनस्थ न्यायालयों के विरुद्ध जारी किया जाता है . इस रिट को जारी करके अधीनस्थ न्यायालयों को यह निर्देश दिया जाता है कि वे अपने पास संचित मुकदमे के निर्णय लेने के लिए उस मुकदमे को वरिष्ठ न्यायालय अथवा उच्चतर न्यायालय को भेजें . उत्प्रेषण लेख का मतलब उच्चतर न्यायालय द्वारा अधीनस्थ न्यायालय में चल रहे किसी मुक़दमे के प्रलेख की समीक्षा मात्र है , इसका तात्पर्य यह नहीं है कि उच्चतर न्यायालय अधीनस्थ न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध ही हो .
5. अधिकार पृच्छा ( Quo - Warranto )
इस रिट को उस व्यक्ति के विरुद्ध जारी किया जाता है जो किसी ऐसे लोक पद  को धारण करता है जिसे धारण करने का अधिकार उसे प्राप्त नहीं है . इस रिट  द्वारा न्यायालय लोकपद पर किसी व्यक्ति के दावे की वैधता की जाँच करता है . यदि उसका दावा निराधार है तो वह उसे पद से निष्कासन कर देता है . इस रिट के माध्यम से किसी लोक पदधारी को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर आदेश देने से रोका जाता है .
                - आशुतोष सिंह चौहान 

जिलाधिकारी (DM) और पुलिस अधीक्षक (SP) के बीच कार्यक्षेत्र और प्राधिकरण के विभिन्न पहलुओं को समझने के लिए संविधान, विधिक प्रावधान और प्रशासनि...